Pulkit Maheshwari   (Booknerdpulkit)
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Doped in life and love❤❤❤❤
Joined 1 December 2018


Doped in life and love❤❤❤❤
Joined 1 December 2018
7 HOURS AGO

कितना अजीब है
अपने भीतर गुम होने की
आदत पड़ने के बाद
दरवाजे पर जोर की ठक-ठक से
गहरी नींद का टूटना
और कुछ देर समझ ही ना आना
कि ये कौनसा समय हुआ,
फिर धीरे-धीरे
असुरक्षाओं का‌ सतह‌ पर‌ आना
और उस ठक-ठक को
अनसुना करने के लिये
हर संभव कोशिश करना।

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18 HOURS AGO

मैं स्वीकार चुका था बहुत अरसा पहले ही
कि तुम्हारी दुनिया में मेरी कोई जगह नहीं
पर फिर भी शायद चुरा लेना चाहता था
समय के मरुस्थल से आत्मीयता के कुछ क्षण
ताकि तुम्हारे ना होने पर भी
जीता रहूं तुम्हारे साथ बेवक्त,
शायद उस चोरी ने ही बनाया है
मुझे समय का अपराधी,
कि मेरे पैरों में है तुम्हारी यादों की बेड़ियां
और मैं हूं आजीवन के लिये तुम्हारा कर्जदार।

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2 MAY AT 21:11

ये जो एक जगह ठहर जाने की ललक है,
कहीं शून्य में गुम हो जाने की चमक है,
इन दोनों के मध्य कहीं फंसा हूं मैं
स्वयं की तलाश में,
पर जब ठहरता हूं तो
महत्वहीन हो जाता हूं
और जब गुम होता हूं तो
सबको याद आता हूं,
इन्हीं विडम्बनाओं के बीच
बिजली के तार से लटकी पतंग सा हूं मैं।

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2 MAY AT 8:50

अप्रैल सिखाता है
खुद को तैयार करना
चीजों को जाने देने के लिये
ताकि तुम कर सको स्वागत
पतझड़ का
क्योंकि जीवन में
दर्द आया ही इसीलिए
कि तुमने छोड़ा नहीं चीजों को
जब समय सही था।

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1 MAY AT 17:15

Sharp
Like the shards
Of a broken glass
And makes you bleed
Everytime
You touch them
In hope of finding
The lost warmth!

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1 MAY AT 12:57

भावनाएं कविताओं में अच्छी लगती हैं
और जीवन व्यवहारिकता से चलता है,
इसीलिए इंसान ख़ामोश अकेली रातों में
लौटता है कविताओं के पास
वो सब महसूस करने को
जिसे वो दिन के उजाले में नकारता है,
शायद इसीलिए कविताएं जरूरी है
क्योंकि वो रखती है मनुष्यता को जिंदा।

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1 MAY AT 10:29

I could always be
Warm like mother's hug
But the world robbed me
For my kindness
And made me cold
Like siberian winds,
Now they call me selfish
For not letting them near me!

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30 APR AT 9:22

कभी-कभी पाता हूं खुद को
अयोग्य कविताओं के,
मनुष्य के दर्द, उसकी वेदनाएं,
उसके आंसू, उसकी ख़ामोश चीखें,
उसका प्रेम, उसका उत्साह,
कितना कुछ खुद में समाहित कर
जो मांगता है उसको वो देते हुए
नदियों की तरह कलरव करती हुई
अहंकार की ऊंचाईयों से
मन की गहराइयों तक बहती है,
कविताएं कितनी विशाल है
और "मैं" कितना छोटा।

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29 APR AT 13:23

जहां हर ज़ख्म भी सहेली है,
हर दरार से एक पौधा निकल आया
जिन पर नन्हीं चिड़ियाओं के बसेरे है,
अभी कल‌‌ ही एक प्रेमी ने फूल तोड़ा था
और लोग पूछते हैं ये दरारें क्यों सहेजें है,
कोई घर ना मिला तो क्या हुआ
किसी का घर बन गये,
लू से झुलसी राहों पर
सुकून की तलाश में भतेरे है।

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29 APR AT 10:10

वो ख़त जो लिखे तो गये
पर किसी किताब में छुपाने को
क्योंकि वो पता ही बदल चुका था
जहां उन्हें भेजने की ख्वाहिश थी,
एक-एक हर्फ में छुपाये बैठे हैं
टूटे सपनों के टुकड़े,
कोई पूछता है आंखों की उदासी पढ़कर कभी
तो मुकर जाते हैं कहकर कि हमें कोई मसला नहीं।

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