कितना अजीब है अपने भीतर गुम होने की आदत पड़ने के बाद दरवाजे पर जोर की ठक-ठक से गहरी नींद का टूटना और कुछ देर समझ ही ना आना कि ये कौनसा समय हुआ, फिर धीरे-धीरे असुरक्षाओं का सतह पर आना और उस ठक-ठक को अनसुना करने के लिये हर संभव कोशिश करना।
मैं स्वीकार चुका था बहुत अरसा पहले ही कि तुम्हारी दुनिया में मेरी कोई जगह नहीं पर फिर भी शायद चुरा लेना चाहता था समय के मरुस्थल से आत्मीयता के कुछ क्षण ताकि तुम्हारे ना होने पर भी जीता रहूं तुम्हारे साथ बेवक्त, शायद उस चोरी ने ही बनाया है मुझे समय का अपराधी, कि मेरे पैरों में है तुम्हारी यादों की बेड़ियां और मैं हूं आजीवन के लिये तुम्हारा कर्जदार।
ये जो एक जगह ठहर जाने की ललक है, कहीं शून्य में गुम हो जाने की चमक है, इन दोनों के मध्य कहीं फंसा हूं मैं स्वयं की तलाश में, पर जब ठहरता हूं तो महत्वहीन हो जाता हूं और जब गुम होता हूं तो सबको याद आता हूं, इन्हीं विडम्बनाओं के बीच बिजली के तार से लटकी पतंग सा हूं मैं।
अप्रैल सिखाता है खुद को तैयार करना चीजों को जाने देने के लिये ताकि तुम कर सको स्वागत पतझड़ का क्योंकि जीवन में दर्द आया ही इसीलिए कि तुमने छोड़ा नहीं चीजों को जब समय सही था।
भावनाएं कविताओं में अच्छी लगती हैं और जीवन व्यवहारिकता से चलता है, इसीलिए इंसान ख़ामोश अकेली रातों में लौटता है कविताओं के पास वो सब महसूस करने को जिसे वो दिन के उजाले में नकारता है, शायद इसीलिए कविताएं जरूरी है क्योंकि वो रखती है मनुष्यता को जिंदा।
I could always be Warm like mother's hug But the world robbed me For my kindness And made me cold Like siberian winds, Now they call me selfish For not letting them near me!
कभी-कभी पाता हूं खुद को अयोग्य कविताओं के, मनुष्य के दर्द, उसकी वेदनाएं, उसके आंसू, उसकी ख़ामोश चीखें, उसका प्रेम, उसका उत्साह, कितना कुछ खुद में समाहित कर जो मांगता है उसको वो देते हुए नदियों की तरह कलरव करती हुई अहंकार की ऊंचाईयों से मन की गहराइयों तक बहती है, कविताएं कितनी विशाल है और "मैं" कितना छोटा।
जहां हर ज़ख्म भी सहेली है, हर दरार से एक पौधा निकल आया जिन पर नन्हीं चिड़ियाओं के बसेरे है, अभी कल ही एक प्रेमी ने फूल तोड़ा था और लोग पूछते हैं ये दरारें क्यों सहेजें है, कोई घर ना मिला तो क्या हुआ किसी का घर बन गये, लू से झुलसी राहों पर सुकून की तलाश में भतेरे है।
वो ख़त जो लिखे तो गये पर किसी किताब में छुपाने को क्योंकि वो पता ही बदल चुका था जहां उन्हें भेजने की ख्वाहिश थी, एक-एक हर्फ में छुपाये बैठे हैं टूटे सपनों के टुकड़े, कोई पूछता है आंखों की उदासी पढ़कर कभी तो मुकर जाते हैं कहकर कि हमें कोई मसला नहीं।