पथिक   (पथिक)
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ज़िंदा हूँ यार काफी है।
Joined 22 February 2020


ज़िंदा हूँ यार काफी है।
Joined 22 February 2020
29 JAN 2022 AT 14:14

रेंत का मुसाफिर हूँ में,
रेगिस्तान का बाशिन्दा हूँ।
आब कहाँ "अजाब" कहो,
फिर बर्बादियों पे नाजाँ हूँ।

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27 JAN 2022 AT 11:57

मंज़िल ही है शायद, या फिर कैफ है सफर का।
गर तुम कहो तो पड़ाव ही कह दूं तुम्हे ए ज़िन्दगी,
या फिर आखिरी स्टेशन कह दूं तुझे आखिरी सफर का।

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19 JAN 2022 AT 10:19

मैंने खींची हुई तुम्हारी हर तस्वीरों पर,
पेन से लिखी हुई वोह तारीखें देखकर
याद आया जो कहा हुआ था तुम्हे कि,
खींचने दो! कल तुम सिर्फ यहीं दिखोगी।

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14 JAN 2022 AT 9:35

गर इश्क़ ही ईमान है तो फर्क क्या,
एक फरीक ही काफी है निभाने को।

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9 JAN 2022 AT 13:22

यही आदतें हैं, इन आँखों की पुरानी,
बेवक्त है फिरसे, ये बारिश आसमानी।

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6 JAN 2022 AT 19:51

कुछ वक्त संभालना आज मुजे,
कुछ देर तलक आज साथ रहना।
राहें अलग है जानता हूँ 'अजाब',
चौराहे तक ही सही...साथ चलना।

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28 DEC 2021 AT 11:32

एक उम्र गुज़र गयी फिर
जवानियों की क्या कहें ।
बसंती हवाएं ज़िंदा तो रही,
सिर्फ "अजाब" के ख्वाबों में।

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28 DEC 2021 AT 9:29

अहद-ए-शबाब की बातें क्या कहें,
बात 'अजाब' अब रात ही रात है।

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20 DEC 2021 AT 15:11

तमन्ना न रही कुछ उसकी अब
न "अजाब" के वो आसूं रहे हैं।
शरीक-ए-दर्द न रहा कोई अब,
बीमार दिल ही अब हकीकत है।

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17 NOV 2021 AT 23:38

ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की कविता

यज्ञों में पशुओं की बलि चढ़ाना
किस संस्कृति के प्रतीक हैं
मैं नहीं जानता
शायद आप जानते हों!
अर्थ बदलकर शब्दों के।

#omprakashvalmiki
#DeathAnniversary

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