मैं लेखिका..मेरी कविताओं में हर एक मौसम का ठहराव है,
मैं यूं बस वरक़ पर सिफ़त सावन के लिख सकती नहीं।।-
नमो बुद्धाय🙏🏻💛
स्त्री विमर्श लेखिका ✍🏻
मेरे प्रेरणास्रोत....बाब... read more
बाअदब मैं भीग जाना चाहती हूं तेरे इश्क़ की बारिशों में,
तू अब आ सनम संग अपनी नज़रों का बादल लेकर।।
तेरी संजीदगी ने हमें पहले से ही बेचैन सावन सा किया है,
तू अब छा सनम मुझ पर मेरी अंबकों का काजल लेकर।।-
उनींदी से भरी आंखों में रास्तों के नियात ना मिले
सफ़र मिला मुझे लेकिन उससे ख़्यालात ना मिले।।
जीवन की उलझी मृगतृष्णाओं में मैं जी लेती मगर
मन को मोहलत ना मिली, हृदय को हालात ना मिले।।
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मेरे लिए प्रेम की परिभाषा
और अर्थ बस इतना ही है
कि मैं तुम्हारे नाम के इन
एड़ियों पर लगे हुए लाल
अलक्तक से लेकर मांग में
सजे हुए सिंदूर के साथ साथ
जिम्मेदारियों के इत्र से भी
सदा यूं ही महकती रहूं।।-
इस बेमियादी मौसिम की मैं चाह करूं भी तो भला अब कैसे करूं,
मुझे उसका आना गवारा है मगर उसका भीग जाना गवारा नहीं।।
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जब बसंत हो रूठा मुझसे,ऐसे में बहारें कहां से लाऊं
मैं रोज़ खुद को ही छलने वाली,मयारें कहां से लाऊं।।
मैं भूल बैठी हूं नज़्म सब,अश्कों से भरी हुई बज़्म में
वरक़ भींगोने वाला स्याही के फव्वारे कहां से लाऊं।।
असरार-ए-हस्ती मेरी मकां के ओसारे में तड़पती है
जहां सुनें सिसकियां,दीवारों में दरारें कहां से लाऊं।।
मरने की ज़िद्द थी लेकिन सांसों ने मुझे मरने न दिया
बिसरी धड़कनों के लिए, मैं इख्तियारें कहां से लाऊं।।-
मैं ये कभी नहीं कह सकती कि
मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत
हो तुम, बल्कि हम दोनों के मध्य
संचारित वो समग्र यादें जो हमें भूत,
वर्तमान और भविष्य से जुड़े हुए है,
मेरी पहली और आखिरी मोहब्बत है।।-
आखिर किस पर यकीन करूं मैं अपना हाल जानने के लिए
तेरी नज़रें कुछ और बोलती हैं,आईना कुछ और है बोलता।।-