शीश पे गिरी बारिश की हर एक बूंद
गिरकर एक दूसरे में मिल जाती है,
मिल कर के हर एक बार एक नया नाम बनाती है,
कहना क्या चाहती है वो बूंदें हमसे?
क्या यही जिंदगी के फहमान (फलसफा) बताती है?
की गिरना या गिर कर किसी में मिलना अच्छा होता है
शायद रिश्तों में भी यही बुंदो का कारवां सच्चा होता है, जो लोगो को गिरना, गिर के उठाना सिखता है,
यही रास्तों को मंजिल, मंजिल को घर बनाता है ||
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