याद है वो तुम्हारा पहली बार मुझसे मिलना, अपनी बाहों में मुझे समेट लेना
उस वक़्त मैं कितना शरमाई थी, तुम्हारे छूने से मैं कितना घबराई थी
फिर तुम्हारे उस प्यार के भाव में, भरोसे के छाँव में,
मैं कब बह गई न जाने कब मैं तुझमें ज़र्रा- ज़र्रा पिघल गयी
तुम्हारे होठों की छुअन जो मेरे माथे पे आयी थी
एक सुकून और प्यार भरे भरोसे की गरमाहट तब जाके मुझमे समायी थी
यूँ तो हमारी मुलाक़ातें बहुत कम हुई थी,
पर जितनी मिली बेहद खूबसूरत हुईं थी
याद है हमारा तकियों से लड़ना, लड़ते लड़ते मेरा तुम्हे पीछे से गले लगाना,
तुम्हारे हाथोँ से खाना, तुम्हारी बाहों में सो जाना
तुम्हारे गले मे बाँहें डाले तुम्हे जल्दी मिलने के वादे करना
और जाने के बाद फिर कुछ यादें और अगली बार मिलने के सपने सजाना
कितना हसीन था वो वक़्त कितना ख़ूबसूरत था वो एहसास
कितना वक्त था तब तुम्हारे पास मेरे लिए कभी फ़ुरसत मिले तो महसूस करना
की सुनते नहीं तुम मेरी कोई बात अब सुनने का अब वक्त कहाँ
इसलिए
लिखे हैं कुछ जज़्बात अपने कभी ख़्याल आये और वक़्त हो तो पढ़ लेना ।
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