सुबह वक्त से पहले जाग्गई। यूं कहें कि जागती रही सारी रात और सोई नहीं ।। जिन फेहरों मैं तु बंधी होगी । जिस हाथों से लाल रंग में सनी होगी।। की होगी बंद मुठ्ठी और मेरी रूह की सांसे तोड़ी होगी। by प्रीतम रावत
टूटे हुए पारो से पूछों उड़ने की चाह। सरकती हुईं दीवारों से पूछो ठहरने की वज़ह।। जो कतरा-कतरा कर चल दिए हों। उसका हिसाब दोगे की नहीं ये बता।। by प्रीतम रावत
तुम हो नही मालूम हैं मुझे। मैं था वही क्या मालूम हैं तुम्हें।। आज भी रखे हैं किसी कोने पे। वो टूटे हुए बाल के गुच्छे।। तुम हो नही मालूम हैं मुझे। मैं था वही क्या मालूम हैं तुम्हें।। आज भी पुराने सिरहाने पे तुम्हारी गंध बरकारा हैं । और आज भी तुम्हारा जाना मुझे ताजा याद है।। by प्रीतम रावत
आऊं क्या !! यह मात्र एक सब्द नहीं एहसास है। कभी ना खोने का ,हमेशा पास होने का, किए गए वादों का ,वोह हसी मुलाकातों का ,वोह काँधे पे सर रख कर खयाली बातों का।। यह मात्र एक सब्द नहीं एहसास है। आऊं क्या!!