उनकी यादें ,उनसे ज़्यादा प्यार जताती हैं,
उनकी बातें उलझाती,लेकिन यादें सुलझाती हैं।
यादें समझती हैं मुझे, मेरे प्यार को,
मेरे हर एक ज़ज्बात को,
हाँ!बिल्कुल
यादों को पता हैं कि मैं जितनी मजबूत दिखती हूँ,
असल में इतनी हूँ नहीं,
हर बार शब्दों के वार से टूटती हूँ मैं,
लगता होगा कि साँसे घुटती नहीं?
खोखली और कमज़ोर मेरी इन रगों को,
केवल उनका प्रेम रूपी रक्त ही ज़िंदा रखे है,
फ़िर भी,अपने हिस्से का प्रेम,
मैं उन्हीं पर छिड़काती हूँ।
हर बार सोचती हूँ कि कह दूँ," अब और नहीं"
लेकिन उन बिन रह भी तो नहीं पाती हूँ।
अगर उनकी यादें न होती,
तो शायद हम कभी साथ भी न होते,
मेरा घर उनमें न बसता,वो मेरे अज़ीज़,
दिल के ख़ास न होते।
पर ठीक ही तो है,मुझसी
कमज़ोर दीवारें, कहाँ किसी का सहारा बन पाती हैं,
जो बनी हैं केवल,जर्जर होने को,
केवल सपनों में ही महल सजाती हैं।
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