Pratibha Sharma  
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Joined 2 June 2020


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Joined 2 June 2020
11 MAY 2023 AT 23:57

हार कर चुन लिया ख़ामोशी का रस्ता मैंने
अच्छा लगता नहीं हर बात पे झगड़ा करना

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1 MAR 2023 AT 16:50

हर लफ़्ज़ में जो ढूँढते हैं मेरे ख़ामियाँ
कितना सँभल के बात करूँ उनसे मैं बता

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18 FEB 2023 AT 11:05

आशुतोष, अनंत, अनादि, भोले हैं घट-घट वासी,
गले में सर्प, मस्तक पर चंदा, भस्म रमाते कैलाशी।
हर मन की पीड़ा वो जाने, विनती सबकी सुनते हैं,
जन-जन का संताप हरेंगे, सुखराशि वो अविनाशी।

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17 FEB 2023 AT 20:49

गर प्यार पर यक़ीन है तो फिर सिला न माँग
और शक अगर है प्यार पे तो फिर वफ़ा न माँग

रहगीर ख़तरे से भरा ये रास्ता न माँग
ख़ारों का है चमन मेरे दिल का पता न माँग

तुझको मिली है चैन की नींदे तो लुत्फ़ ले
ये प्यार-व्यार करके अमाँ रतजगा न माँग

ख़ुद भी तो कोई फ़ैसला ले अपने वास्ते
हर एक बात पे किसी का मशविरा न माँग

कुछ दर्द और स्वाद बढ़ाते हैं ज़ीस्त का
कुछ लुत्फ़ ज़ख़्मों का उठा फौरन दवा न माँग

दामन पे ख़ुद के दाग़ है उसका ख़याल कर
यूँ औरों के गुनाह की रब से सज़ा न माँग

सजदों में माँग ले कभी औरों की भी ख़ुशी
अपने ही वास्ते तो यूँ हरदम दुआ न माँग

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6 FEB 2023 AT 19:59

वो करेगा दुआ क्या किसी के लिए
जो रखे ज़ह्र दिल में सभी के लिए

हँसते-हँसते ख़ुशी अपनी माँ वार दे
अपनी औलाद की इक हँसी के लिए

मौत तो मारती है बस इक बार ही
रोज़ मरना पड़े ज़िंदगी के लिए

ग़म न जिसको मिला वो कहे शे'र क्या
दर्द है लाज़िमी शाइरी के लिए

पूरी ग़ज़ल कैप्शन में....

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25 JAN 2023 AT 19:32

जो बस में है नहीं कर पाऊँ कैसे
पहेली ज़ीस्त की सुलझाऊँ कैसे

अभी तो इब्तिदा-ए-दोस्ती है
अभी से राज़-ए-दिल बतलाऊँ कैसे

जो चहरा देख कर पढ़ लेता है दिल
क़रीब उस आइने के आऊँ कैसे

बताना मुझ को इतना तो सखी री
उठे घूंघट तो मैं शरमाऊँ कैसे

तलब रूहानी उल्फ़त की है दिल को
मजाज़ी इश्क़ से बहलाऊँ कैसे

नमक लेकर जो चलते हैं हमेशा
मैं ज़ख़्म अपना उन्हें दिखलाऊँ कैसे

निभाने और भी हैं फ़र्ज़ मुझ को
मैं तेरे प्यार में मर जाऊँ कैसे

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21 JAN 2023 AT 23:27

न क़फ़स में क़ैद हूँ मैं न तो पाँव में है बेड़ी
मैं तुम्हें बताऊँ कैसे कि बँधी हूँ किस तरह से

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15 JAN 2023 AT 22:09

देख लेते तेरा अस्ल चेहरा भी हम
बीच में हाय ज़ालिम नक़ाब आ गया

तुझ को लगता है ऐसा कि रोए हैं हम
ये तो गर्मी से चहरे पे आब आ गया

प्यार अव्वल किसी पर तो आया नहीं
उन पे आया तो फिर बेहिसाब आ गया

ग़म फ़क़त एक रुख़सत किया मैंने फिर
दर्द का मेरी ओर इंतख़ाब आ गया

पूरी ग़ज़ल कैप्शन में...

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15 JAN 2023 AT 19:58

टूट के बह जायें जब ये तब मिले राहत इन्हें
बोझ अश्कों का उठा कर थक गईं आँखें मेरी

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14 JAN 2023 AT 13:29

आशिक़ के मैं बदन में नहीं बस, दिलों में हूँ,
मैं इश्क़ हूँ जो दौड़ता उनकी रगों में हूँ।

घर पर रहूँ मैं या कि भरी महफ़िलों में हूँ,
मत फ़िक्र कर तू यार मेरे दायरों में हूँ।

ग़ुस्से ने तोड़ डाले तकल्लुफ़ के बाँध सब,
वरना मुझे गुमाँ था मैं अपनी हदों में हूँ।

तूने किया है कौन सा एहसास मेरे नाम,
मैं आँसूओं में हूंँ कि तेरे कहकहों में हूँ।

मिलता बड़े ही प्यार से पर लगता क्यों मुझे,
शामिल मैं यार सिर्फ़ तेरी नफ़रतों में हूँ।

किस सफ़ में तूने रक्खा है मुझ को ज़रा बता,
हूँ दोस्त तेरी या मैं तेरे दुश्मनों में हूँ।

हर मोड़ पर मिलूँगी मैं हँसते हुए तुझे,
होगा न इल्म तुझको कि मैं उलझनों में हूँ।

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