मेरी कोख में एक राज़ दफ़न है,
रूह में पहना ये कैसा कफ़न है?
सिल रहा ज़िंदगी की तार से कुछ सांसो को,
प्यास गहरी है, तलाश रहा हूँ कुछ प्यासों को।
एक तज्जसूस है की बांटनी ये खानी है,
दो पल मुलाक़ात फ़िर उम्रभर रवानी है।
बटवारा तो हो गया, हर ओर बहता अब लाल रंग का पानी है,
जहां काम ना आयी तलवार, घायल करने को ज़ुबानों-सी ना कोई सानी है।
बड़ा गुमाँ हैं रौशनी को रौशनाई का,
अब उनसे जो मिले, क़ीमत तो चुकानी है।
मैं पापी हूँ, पाप करने की ठानी है,
आ बैठ तुझे मेरी कुछ गिरी हुई हरकतें बतानी हैं।
ये कैसा रिश्ता है जो बस जिस्मानी है?
सुख कैसे गया वो तालाब जहां बहता इश्क़ रूहानी है?
अजीब ही उनकी भी कारस्तानी है,
वो मिलने तो आ रहें मग़र जाने की ख़बर सुनानी है।
उन्हें इल्म है या इश्क़ के आगाज़ से वो अनजानी है?
भाग चाहे जहां जी चाहे, मौत तो एक रोज़ आनी है।
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