ज़िन्दगी बेहतर बनाने के लिए गाँव से लोग निकल जातें हैं पर लोगो के अंदर से गाँव , कभी नही निकल पाता.. शायद यही कारण है कि सुकून की तलाश में अक्सर लोग अपने गाँव का ही रुख करते हैं ....।
दर्द और तकलीफ का भार ज़िन्दगी भर ज़्यादा रहा शख्स काफी मजबूत था , पर दिल और दिमाग के इस जंग में रोज़ खुद को हारता रहा इन्ही छोटे-छोटे कदमो ने एक आखिरी अंजाम तय कर लिया ज़िन्दगी अधूरी रही और मौत का आश्रय कर लिया...!!
रिश्तों की डोर को मज़बूत बनाना पड़ता है सिर्फ प्यार ही भरा हो ऐसा ज़रूरी तो नही संभलने-संभालने से से ही सम्बन्ध स्थापित रहते हैं यूँ अक्सर लड़ कर बिछड़ जाए, ज़िन्दगी इतनी भी अधूरी तो नही...।।
इसी कश्मकश में ज़िन्दगी बीत जाती है समाज के नियम में ज़िन्दगी उलझ जाती है मेरी आज़ादी का मोल वो चार लोग क्या तय करेंगे जिनका आचरण उनकी पिछड़ी सोच संभालती है..।।।