प्रेम करना और कह देना कितना आसान है वही दूसरी ओर ता उम्र प्रेम करना पर कभी ना कह पाना कितना जटिल ! युद्ध में अपने प्राण न्यौछावर करने वाले योद्धा और अपना प्रेम न्यौछावर करने वाले प्रेमी , दोनों शहीद होते है क्योंकि शहादत प्राणों की हो या प्रेम की मरता दोनों में इंसा ही है !
छलकती आँख लेकर के गले से आ लगी मेरे जकङ कर बाह में मुझको वो धीरे से यूं कुछ बोली अजब सी ऊब शामिल है अजब सी तिलमिलाहट है शहर की भीड़ है शामिल मगर फिर भी अकेली है
मैं कहता हूं बड़े लहजे से उस पगली सी लड़की से ; महीने भर के चांदो में , अमावस भी अकेली है औ पूनम भी अकेली है !
मैं चाहता तो हूं यहा से बाहर निकलना मगर इन दीवारों पे दरवाजे नजर नहीं आते तेरे दर पर आते होगे मुसाफिर कई मगर मेरे जैसे भटके हो वो मुसाफिर नहीं आते मैं चाहता हूं वापस अपने चेहरे की रंगत मगर तेरे चेहरे पर वो नजारे नजर नहीं आते और तुम कहती रहती हो खुद को शागिर्द मेरा फिर हम दोनों कभी एक सफर पर क्यों नहीं आते!