•|| धर्म बन गया आज व्यापार ||•
जीवन की इस भाग दौड़ में , खो गया धर्म व्यवहार ,
लो धर्म बन गया आज व्यापार ।
नहीं कोई इससे सस्ता है , बिना पूंजी का व्यापार ,
लो धर्म बन गया आज व्यापार ।
बिकते मूर्ति स्वर्ण भाव में ,बंद बोतल में गंगा की धार ,
लो धर्म बन गया आज व्यापार ।
भोगी ,लोभी वर्चस्व बनाते , तिरस्कृत होते पुण्य तेज से तपे हुए भक्त परिवार ,
लो धर्म बन गया आज व्यापार ।
बिन भावों के पूजन होता , धर्म लगता सबको अब भार ,
लो धर्म बन गया आज व्यापार ।
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