Pramod Jain   (प्रमोद के प्रभाकर भारतीय)
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Joined 1 September 2018


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13 HOURS AGO

# 09-05-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # जवानी # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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जवानी के दरवाज़े पर चढ़ने से पहले अपना भविष्य गढ़ लेना।

अपना स्वर्णिम भविष्य गढ़ने के बाद ही प्यार का पाठ पढ़ लेना।

जवानी की अंधेरी और बदनाम गलियां ज़िंदगी को सुकून नहीं देगी -

सुकून पाने के लिए बुलंद भाव से शोहरत की सीढ़ियां चढ़ लेना।
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7 MAY AT 19:55

# 08-05 -2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # वक्त # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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वक्त बीत जाने के बाद ही बीता वक्त याद आता है।

बीता वक्त फिर कभी ता-उम्र लौटकर नहीं आता है।

वक्त पर ही वक्त के साथ चलना बख़ूबी सीख लो-

प्रतिकूल वक्त में कोई भी आँसू बहाने नहीं आता है।
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6 MAY AT 19:24

# 07-05 -2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # सरकार # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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फिर आये तेरी सरकार हाँ हाँ रे हाँ बाबा हाँ रे।

इस बार हो चार सौ पार हाँ हाँ रे हाँ बाबा हाँ रे।

झूम-झूम कर सब नाचे-गाये हुआ ख़ुशहाल इंडिया-

इस बार बने तीसरी बार हाँ हाँ रे हाँ बाबा हाँ रे।
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5 MAY AT 19:25

# 06-05 -2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # भ्रष्टाचार # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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भ्रष्टाचार के वट वृक्ष की जड़ें हमारे समाज में बहुत गहरी है।

भौतिकता की अंतहीन चकाचौंध में हमारी अंतरात्मा बहरी है।

भ्रष्टाचार हमारे सार्वजनिक जीवन की रग-रग में इस कदर समाया है-

भौतिकता की आँधी में जीवन शैली भ्रष्टाचार के इर्द गिर्द ठहरी है।
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4 MAY AT 19:31

# 05-05-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # गुलशन # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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मुझको आँखों में बसा कर अब तुम्हें मेरे दिल में ही रहना है।

प्यार की प्यासी रातों में अब मेरी बाँहें ही तुम्हारा गहना है।

मेरे दिल के गुलशन में रह कर तुमको भी करार आ जाएगा-

प्यार के मौसम में तपिश से बच कर रहा करो .यही कहना है।
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3 MAY AT 19:23

# 04-05-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # विश्वगुरु # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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विश्वगुरु बनने के लिए बहुत बड़ी सकारात्मक सोच होनी चाहिए।

सबका साथ सबका विकास भाव के साथ संकीर्णता खोनी चाहिए।

दुनिया के छोटे-छोटे देश भी आज आँख उठा कर बात करते हैं -

विश्वगुरु बनने के लिए नकारात्मक संकुचित सोच खोनी चाहिए।
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3 MAY AT 1:21

# 03-05-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # रानी # प्रतिदिन .प्रातःकाल. 06 .बजे #
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रात की रानी की महक दिल को घायल कर जाती है।

दिल की रानी दिल को अपनी महक से भर जाती है।

महक से बहकती है जब रात बदहवास-सी होकर-

मन की रानी बेसुध-सी होकर प्यार पे मर जाती है।
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1 MAY AT 20:17

# 02-05-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # वक्त # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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कभी भी वक्त का ऐतबार मत करो वक्त आने पर जान निकल जाएगी।

वक्त की तासीर समझ कर ज़िंदगी जी लो वरना जीते जी निगल जाएगी।

समझी नहीं जिसने ज़िंदगी में वक्त की कीमत वो ठगा गया ज़िंदगी में -

वक्त की कीमत जान कर जी लो अब तो वरना ज़िंदगी फिसल जाएगी।
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30 APR AT 21:12

# 01-54-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # सहारा # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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जब भी कर लेता मुझसे कोई किनारा है।

तब ज़िंदगी में बस तुम्हारा ही तो सहारा है।

ज़िंदगी के हर मुश्किल वक्त में हमने तो -

बड़ी उम्मीदों से तुम्हें ही तो निहारा है।
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29 APR AT 18:51

# 30-04-2024 # प्रभाकर भारतीय कृत काव्य कुसुम # मोहब्बत # प्रतिदिन प्रातःकाल 06 बजे #
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जब मोहब्बत रूपी सरिता पूरे वेग से छलकने लगती है।

तब वेग के आवेग में मोहब्बत बेइंतहा मचलने लगती है।

जब मोहब्बत रूपी ज्वार-भाटे से दिल की धड़कन बेकाबू हो जाती-

तब लहरों के उतार-चढ़ाव में मोहब्बत सँवरने लगती है।

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