बड़ा आसां है किसी और को बोलना, खुदके दिल मे भी कोई आइना-ए-आवाज है क्या?
यूँ ही तो नही बदलते रिश्तें इस जहाँ के देखना,कहीं कोई धागा नाज़ुक-ए-नासाज़ है क्या?
ये जो दूसरों के किरदार पे इतना सवाली है जमाना, तो इन्हे बता दूँ.....
ऐसे कैसे बदल दे, ये शख्सियत है हमारी ,कोई मौसम-ए-मिज़ाज़ है क्या....!
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