Pragya Kashyap   (Pragya Kashyap)
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Joined 28 February 2020


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Joined 28 February 2020
20 MAR AT 1:20

हम नई कहानियों और किस्सों से
उन्हे हंसाया करते है,
हमारा हर सुख–दुख बस
उनसे जताया करते हैं
बेखौफ थे,उनको पाकर हम
हां,बेखौफ थे उनको पाकर हम
और वो...अक्सर हमें
छोड़ जाने की किश्तें बताया करते हैं।

–pragya kashyap

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8 SEP 2023 AT 11:31

क,ख,ग,घ से परस्नातक तक का सफर हो
या जीवन में कहीं संघर्षों का डर हो
पर, ये हर डगर आसान कर जाते हैं,
जन्म तो दिया हैं माता पिता ने
पर इस जीवन को रोशन करने वाले,
ये शिक्षक कहलाते हैं।

पेंसिल से पेन तक की  सुंदर लिखावट बनाने में
क्लास एग्जामस से थीसिस तक पहुंचाने में..
और जो भी मैं आज बोल रहीं हूं ना,
मुझे इस काबिल बनाने में...
यदि,शिष्यों का नाम हो कहीं...तो खुद ही
गुरुओं के मान बढ़ जाते हैं।
इसीलिए ईश्वर से भी पहले गुरु नाम आते  हैं
हमारी जिंदगी की इस वर्णमाला को शब्दों में
पिरोकर भाषा समझाने वाले
ये शिक्षक कहलाते हैं

सीखने जिज्ञासा हो,या कोई ज्ञान का प्यासा हो
युद्ध में निपुणता ,या कहीं सारथी की अभिलाषा हो
दोनो में ही... कभी एकलव्य को तीरंदाजी, तो कभी
अर्जुन को ज्ञान सिखाते हैं,
वो गुरु द्रोणाचार्य तो तो कभी श्रीकृष्ण कहे जाते हैं
ये पावन लोग आकाश में नहीं धरती पर ही मिल जाते हैं
हमारे नन्हे पंखों की उड़ान को आसमान दिखाने वाले
ये शिक्षक कहलाते हैं।








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29 JUL 2023 AT 11:00

हमारे रास्ते भी कितने अजीब हो गए
वो जो हमारे थे कभी अपने
आज किसी और के अज़ीज़ हो गए।
जमाने भर से जिन्हें अपना कहते रहे हम
वो गिनाते रहे खामियां हमारी
जिनके लिए हम ताउम्र मरीज हो गए।

-Pragya kashyap

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15 MAR 2023 AT 11:42


उसके सिवा ना इतना कोई पसंद आया,ना ही कभी आयेगा,
मुर्शद.....,
वो एक ही है, दुनिया में....
जो सिर्फ इस दिल में नज़र आएगा...।❣️

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14 MAR 2023 AT 15:35

इश्क तो कहना तुम,
मैं फिक्र बेहिसाब लिख दूंगी
कि,इश्क तो कहना तुम...
मैं फिक्र बेहिसाब लिख दूंगी।
बस जरा मुस्कुरा तो देना तुम,
तुम्हारे होठों की हंसी पर भी...,
मैं एक किताब लिख दूंगी।❣️

-Pragya kashyap

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16 FEB 2023 AT 18:41

तू इतना खूबसूरत है,
कि तेरी हिफाजत को डरूं
लहजा इतना मासूम है,
कि तेरी इस नजाकत पे मरूं
रूहानियत खुदा ने कुछ ऐसी गढ़ी है तुझमें,
कि तेरे दीदार से ही इबादत मैं करूं।
P...S♥️🤗

–pragya kashyap

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6 OCT 2022 AT 17:21















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24 SEP 2022 AT 12:35

खूबियां तो नहीं इतनी कि
मशहूर हो जाऊं...
कमियां भी नहीं इतनी कि
मगरूर हो जाऊं...
कभी फुर्सत से तो सुनो...
इस आवाज को,
यकींनन... तुम्हारी रूह को
मैं मंजूर न हो जाऊं...।

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22 SEP 2022 AT 8:31

किसी सुबह की भोर हूं मैं...
कोई अनदेखा–सा शोर हूं मैं...
कौन जानें किस ओर हूं मैं...,
किसी पतंग से जुड़ी एक डोर हूं मैं....।

कहीं बारिश की बूंदों में, कहीं सागर की लहरों में बहता–सा पानी हूं मैं
कहीं झिलमिलाती तितली की एक नादानी हूं मैं
पर अब अकेले होने का मलाल नहीं मुझे...
सुनते थे,सुनते हो और सुनते रहोगे तुम्हारे होठों पे लिखी ऐसी कहानी हूं मैं...।

हां चलते–चलते अब थक गई हूं मैं
कुछ कहते–कहते रुक गई हूं मैं
सब कहते हैं ना....,उन जैसी बनो
पर अब घायल होने का भी मलाल नहीं मुझे.....
अकेली थी,अकेली हूं और अकेली ही रहूंगी,शायद इन दुःखों की जानी–पहचानी हूं मैं...।
–प्रज्ञा कश्यप

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15 MAY 2022 AT 19:49

मां—रोज काम करती हैं, रोज थकती हैं,
दर्द भी होता है उन्हें पर वो कभी नहीं सिसकती हैं।

पापा—रोज काम पर जाते हैं,रोज देर से आते हैं,
मेरी इच्छाओं के लिए,रोज कुछ नया लाते हैं,
पैसे नहीं बचते हैं,पर वो कभी नहीं बताते हैं।

मेरी इतनी सी ही तो दुनियां है,
बाकी सारे रिश्ते बस नाम कमाते हैं।

जिनके होने से हमारा साहस हर दिन निखरता है,
एक परिवार ही तो है,जो हम पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करता है।
रोज नए रिश्ते बनते हैं,रोज टूट जाते हैं,
हम कितना भी आगे बढ़ जाए,पर परिवार हम कहीं और नहीं बना पाते हैं।

हमेशा परिवार साथ हो न हो पर यादों में भी इनके सपने होते हैं
क्योंकि अपने तो बस अपने होते हैं।

—प्रज्ञा कश्यप

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