" ना राम हुवे ना रावण बनना सीख पाए,
कमियां ढूंढ़ते रहे दूसरे में अपने अंदर ना झांक पाएं,
ना सब्र सीखा राम से ना तप रावण सा करना आया,
चंद कठिनाइयों से विचलित होकर ना मर्यादा में रहना आया,
माना रावण में थी लाख बुराई पर उसने ये सबक सिखाया था,
बहन की इज्ज़त की खातिर अपना सर्वस्व लुटाया था,
माना कि मां सीता से प्रभु ने अग्नि परीक्षा मांगी थी,
लेकिन प्रभु राम ने भी जीवन में परनारी पर ना नजर उठाया था,
ना राम तुम्हे बनना है ना रावण तुम बन कर दिखलाओ,
जिस मानव रूप में जन्म लिया है वो मानव तो बनकर दिखलाओ,
पर पीड़ा को जिस दिन हम अपनी पीड़ा समझेंगे,
उस दिन सब अच्छा हो जाएगा बस इतनी सी बात समझ जाओ,
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