कोरी कल्पनाएँ!
एक तरफ़ तो ज़माने से मुझे चुराके छुपाने का दम भरते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!
एक तरफ़ मेरे चेहरे से अपनी नज़रें न हटा पाने का ज़िक्र करते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!
एक तरफ़ तो मेरे नयनों को चुराने, मेरे भीगे लबों की लाली,
मेरी बिखरी मुस्कान समेटने की ग़ैरों से बचाने की बात करते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!
वाह जनाब आपकी नज़र तो टिकी है मेरी पतली कमरिया पर
और मेरे गेसू सहलाने के अरमान रखते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!
मेरी नथनिया उसमें जड़ा हीरा, बालों में लगी फूलों की झुमरिया,
मेरी आवाज़ मेरी चाल और न जाने क्या क्या
इन सबसे दिल में चाँद सी रौशनियाँ होने की बातें करते हो
यानी कि तुम मुझपे मरते हो यही शायद दिल से मानने से डरते हो
तभी तो अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो…..!
( मैं Instagram account @ehsaas-e-tarannum का
आभारी हूँ क्योंकि यह रचना उस एकाउंट पर प्रकाशित पूनम जी की
मूल रचना Self-Love से प्रेरणा पाकर एक Sequel के रूप में
लिखी गई है! )
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