Pradeep Shoree   (deepjams4 - some wandering thoughts)
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Joined 17 September 2020


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17 HOURS AGO

संतुलन!

हर जगह दौड़ा भागा है दिन रात अभागा
अशांत मन में भर गया सिर्फ़ शोर-शराबा
तन सुख पाने निकला तो मन सुख त्यागा
मन सुख गँवाया हाथ लगा बस पछतावा!

सुनी थी तन सुख से मन के रिश्ते की बात
सुना मन से ही सही होते हैं तन के हालात
जो तन से अक्षम हैं जियें मुस्कान के साथ
मन से अक्षम बने तो कहें दिन को भी रात!

तन से अक्षम चाहे जियें संघर्ष भरा जीवन
फिर भी रहे दृढ़ निश्चय से भरा उनका मन
हर क्षण वो आशाओं से भरें अपना जीवन
चुनौतियों से मुँह न फेरेंगे रहे उनका प्रण!

मन के जीते ही जीत है मन से कभी न हार
हारे मन से तो पहुँचे सीधे ही पराजय द्वार
मन क्यों उपेक्षित हो काम में डूबे दिन रात
संतुलित जीवन ज़रूरी है बात रखना याद!

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4 MAY AT 16:39

यादें!

यादें रह ही गयीं अब वो कहाँ आते हैं
उनके पैग़ाम दिल को बड़ा सताते हैं!

पैग़ाम कहाँ मिट पाते हैं कभी कोई
निशान उनके चाहे धूमिल पड़ जाते हैं!

कोई समंदर की रेत तो नहीं है यादें
लहरों से जिनके निशाँ मिट जाते हैं!

छाप दिलों में रहती है उनकी हरदम
क्यों कहीं और उन्हें ढूँढने अब जाते हैं!

अपना ठिकाना बदल गये जाने कब
जिन्हें तस्वीरों में ही ढूँढते रह जाते हैं!

हो सके मन की खिड़की खुली रखना
सुना है वो ख़्वाबों में मिलने आते हैं!

जब नींद भी रूठके कहीं चली जाती है
रह रहकर ख़्याल उनके बड़ा तड़पाते हैं!

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30 APR AT 12:03

We love going to cleaner shores of others to enjoy there than cleaning our own ones
ending up soiling the cleaner ones too out of our obsession for spoiling cleanliness!

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29 APR AT 19:56

आनंदमय धरा!
इन्सान दूसरों को बस इन्सान समझ ले
बिना भेदभाव दूसरों को स्वीकार कर ले
मिल बाँट हर ले दुःख दर्द इक दूजे का
गिराकर नफ़रतों की दीवारें प्रीति कर ले
तभी शान्ति का दरख़्त हर घर में फलेगा
मोहब्बत का फूल हर बगीचे में खिलेगा!

वरना जो चल रहा है वो ही चलता रहेगा
शोषक शोषित को छल से छलता रहेगा
प्रताड़नाओं की आग में वो जलता रहेगा
इन्सान इन्सान का मांस कचोटता रहेगा
दूसरों के खून के लिए बस लोटता रहेगा
शैतान बनके सब तथ्य ही मरोड़ता रहेगा!

बातों का सिलसिला तो चलाना ही होगा
मिलना भी होगा हाथ भी बढ़ाना ही होगा
दिलों में पनप रही नफ़रतें मिटाने के लिए
उम्मीदों का दिया घर घर में जलाना होगा
मोहब्बतों की वादियों को बसाने के लिए
नस्ल रंगभेद का फ़ासला मिटाना ही होगा!

ज़रूरत है षड्यंत्रों से सभी तोबा कर लें
जातियाँ अक़ीदे मिलने का इरादा कर लें
शांति की पताका हर तरफ़ ही लहरायेगी
ज़रूरत है इनसानियत का सम्मान कर लें
तभी जाकर अमन पसन्द मसीहा कहेगा
आनंदमय धरा छोड़ क्यों कहीं और रहेगा!

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28 APR AT 11:01

ज़मीन के दर्द…!

कहीं मुझे बाँट दिया मुल्कों में
मुल्क बँटे खित्तों सूबों शहरों में
बंटती ही रही बस अंतहीन सी
बँटती गई कई क़स्बों देहातों में
गलियाँ मोहल्ले चौराहे थे सब
तब भी बँटी दिशाहीन राहों में
कभी महासागर कभी महाद्वीप
कभी बँट गयी नदियों नालों में
रेगिस्तान बंजर पत्थरीली जमीं
ढूँढते हो मुझे खाइयों पहाड़ों में
बदल रहे हो अब पहचान मेरी
यहाँ बनाके घेरे कई सवालों में
छाती चिरवायी अनाज उगाया
दिये कपड़े बसाया मकानों में
सीना कितना छलनी करवाया
परमाणु विस्फोट अनुसंधानों में
माँ कहके बस लूटा ही है सबने
आयी नहीं किसी के ख़्यालों में!

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27 APR AT 12:31

कोरी कल्पनाएँ!
एक तरफ़ तो ज़माने से मुझे चुराके छुपाने का दम भरते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!

एक तरफ़ मेरे चेहरे से अपनी नज़रें न हटा पाने का ज़िक्र करते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!

एक तरफ़ तो मेरे नयनों को चुराने, मेरे भीगे लबों की लाली,
मेरी बिखरी मुस्कान समेटने की ग़ैरों से बचाने की बात करते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!

वाह जनाब आपकी नज़र तो टिकी है मेरी पतली कमरिया पर
और मेरे गेसू सहलाने के अरमान रखते हो
मगर अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो……!

मेरी नथनिया उसमें जड़ा हीरा, बालों में लगी फूलों की झुमरिया,
मेरी आवाज़ मेरी चाल और न जाने क्या क्या
इन सबसे दिल में चाँद सी रौशनियाँ होने की बातें करते हो
यानी कि तुम मुझपे मरते हो यही शायद दिल से मानने से डरते हो
तभी तो अभी भी हक़ीक़त में नहीं
कल्पनाओं में मुझे प्यार करने की कल्पना करते हो…..!
( मैं Instagram account @ehsaas-e-tarannum का
आभारी हूँ क्योंकि यह रचना उस एकाउंट पर प्रकाशित पूनम जी की
मूल रचना Self-Love से प्रेरणा पाकर एक Sequel के रूप में
लिखी गई है! )

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26 APR AT 7:43

Bitter Almonds or Hard Nuts!

(Please read the write up in caption!)

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25 APR AT 7:47

A Small Story!

(Please read in the caption!)

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24 APR AT 12:32

Do we humans……
































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22 APR AT 21:33

स्वप्न तन्द्रा!
यह दिल कुछ भी कहता है
बस भावना वेग में बहता है
देख आकृतियाँ मनमोहक
स्वप्न तन्द्रा में बस रहता है!

कल्पित स्वप्न सुंदरियाँ सभी
मनमोहक परिदृश्यों में रचित
भरपूर भरमा रहे परिधानों में
करें मादकता से मन मोहित
रसमय निद्रावस्था में डूबे हैं
भाव बने सभी अव्यवस्थित
आचार बदल रहा भ्रमित मन
कहे ये निद्रा नहीं अयाचित!

फिर कौन समझाये मन को
जो अवधारणा में ही रहता है
यह कौन सा सागर है अलग
जो नित दिन मीठा बहता है!

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