कभी उमड़ता सा था कुछ एहसासों का हुजूम, उन जज़्बातों का सैलाब, कब से थी, कुछ अनकही बातें, कुछ अनसुने एहसास, पूरे ना हुए थे, वो अनछुए अरमां, बिखरी सी थी कुछ ख्वाहिशें, कुछ फैले से ख्वाब, आप से मिलकर मिले, वो सुकूँ के बिछे गलीचे, वो खयालातों के बगीचे, अब, महकती हुई सी हैं मेरी साँसें, और रूह पर, वो उम्मीदों की मुस्कान... कौन कहता है कि, कुछ नहीं दरमियाँ, तेरे मेरे बीच.....
कुछ रिश्ते पुराने से अपनी ओर बुलाते हैं। छूट गए जो दोनों की " मैं " में आज इस पड़ाव पर याद आते हैं । शायद कुछ देना रह गया। या शायद कुछ लेना रह गया। या फिर शायद कुछ ज्यादा दे दिया। इसी असमंजस में एक खालीपन दे जाते हैं। कुछ रिश्ते पुराने से अपनी ओर बुलाते हैं।
जिसकी कद्र करो, वो वक्त नहीं देता। मोहब्बत का हर कोई, काबिल नहीं होता। सच्ची मोहब्बत का, दर्द भी अजीब होता हैं। आंसू बहा कर भी, दिल को सुकून नहीं मिलता।
इश्क अगर इबादत हैं तो करना है मुझे... इश्क अगर जुनून हैं तो जीना है मुझे... इश्क अगर नशा हैं तो करना है मुझे इश्क के हर घूंट को पीना है मुझे इश्क अगर तू हैं तो तुझ में सामना है मुझे.... इश्क के हर रंग में अब रंग जाना हैं मुझे
ना गिला, ना शिकवा जिंदगी बस पलों का सिलसिला। कभी उलझी हुई, तो कभी सुलझी। हमेशा पाने की जिद में, कभी मचलती हुई। ठहर जा जरा, थम जा जरा। बिखर जाएगी, संभल जा जरा। इस बार सिमट कर, जी जा जरा।