यादो की बारात थी,
डोली मेरे प्रिय की खास थी,
महावर रचे पैरों के पायल में,
प्रिय की ही झनकार थी,
लाल जोड़ा ,
प्रिय के प्रेम से दमकता था,
बिंदिया सिंदूर उनके इश्क की,
दास्ताँ कहता है,
उम्र का आखरी पड़ाव गौतम,
बिस्मिल्ला खान की शहनाई संग,
तुम्हारे आंगन की तुलसी बनने को,
बेताब थी।
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