मेरे चेहरे की उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती,
ये निग़ाहें बुझी बुझी मुझे अच्छी नहीं लगती।
यूँ ही मेरा सारी-सारी रात, तन्हा जागते रहना,
ये अँखियों की प्यास मुझे अच्छी नहीं लगती।
फिर से सुना जा बिन बताए,तू कोई गीत मुझे,
ख़ामोशियों की सौग़ात मुझे अच्छी नहीं लगती।
तू मुस्कान सजा जा मेरे लबों पर पहले की तरह,
ये ग़मों की जलती आग मुझे अच्छी नहीं लगती।
उजालों से कह दे,ना खेलें आँख मिचौली मुझसे,
ये अँधेरों की बिजलियाँ मुझे अच्छी नहीं लगती।
देख आकर तू आँखों से मेरी ये गिरते हुए गौहर,
ये बेमौसम की बरसात मुझे अच्छी नहीं लगती।
अब और देर ना कर पहले सा ही आ मिल मुझसे,
तेरे बिन अब ये क़ायनात मुझे अच्छी नहीं लगती।
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