pooja 08   (pooja)
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Joined 13 January 2019


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9 SEP 2022 AT 12:58

लगा के रूठे हो तुम
तो हम मनाने की चाहत कर बेठे,
जो मिले तुम तो
सवरने की चाहत कर बैठे,
नहीं मालूम था के
बातों से दायरे चुन रहे हो
उन दायरों से हमे बिखेरे जा रहे हो
खैर; ............
अब जो कभी मिले तो
उन दायरों से दूरी बुनना, बुनते बुनते कहीं दूर चले जाना
मैं ढूँढूँगी तुम्हें
पर मुझे तुम , यूही छोड देना
सिमटने का सलीका बख़ूबी ,सीखना है मुझे
ताकि मिलों कभी
तो चाहतों में फिर ,तुम्हारे कभी ना सवरे।
______________________________🍁🍁🍁

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9 MAR 2020 AT 12:07

•~•~•~•~•
कुछ "तुम" जैसे ,
कुछ "मुझ" जैसे,
कुछ "हम" जैसे,
रंग लाई हूँ
पसंद आ जाये तो बस एक दफ़ा,
चेहरे पर सजा कर मुस्कुरा देना।
•~•~•~•~•

Happy Holi 😍

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13 JAN 2019 AT 12:51

"Life" is like a library, pick the things in sequence, So that it would be easy
to find your answers in future😊

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27 DEC 2021 AT 21:11

सीले हुए पन्ने पर लिखी कहानी सी तुम,
वक़्त-दर-वक़्त और भी महकती जा रहीं हो।
🍁🍁🍁🍁🍁

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21 DEC 2021 AT 20:33

जख्मों से शिक़वे नही दर्दों से यारी है
कभी हीर राँझा थे अब हमारी बारी है

गर जा रही थी तो यादें भी ले जाती
आज भी नींदो पे तेरे ख़्वाब भारी है

आस थी!! की तुम वापस आओगी
मैंने इंतिजार में पूरी जिंदगी गुज़ारी है

तुझे न पाने मैं क्या दुःख बयाँ करूँ ?
ये तेरे दिल को जीतकर हारी है

ये मेरी मोहब्बत कोई और चाह नही
जिसमे डूबे है वो आँखे तुम्हारी है

तेरी यादें मेरी परेशानी भी हो भले
मगर ये परेशानी बड़ी प्यारी है 😍

*AMIT*

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27 MAY 2021 AT 12:40

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बन्द लिफाफो की सिहायी के
कुछ दायरे बनते चले गये,

तुम्हारे होकर भी हम कुछ
कायदों में बंधते चले गये,

के नज़र के इस छोर पर ठहर कर भी
हम हर ओर से बटते चले गये,

लिखी पढी इन कहानियो के
रिवाजो से हम बनते चले गये,

अब सिमित शब्दो के इस लेख के
कुछ मायने भी बनने लग गये।
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23 MAY 2021 AT 15:53

एक तरह की "महोबत्त" तो उन्हें भी है मुझसे,
जो मेरे अक्स में ही मुझे पूरा निहार लिया करते है।

और शीशा भले ही टूटा हो,
पर "संजोह" के बड़े प्यार से रखा करते है।

की शिकायते उन्हे भी ज़रूर होंगी मुझसे
पर मुसकराते बडा "नाज़"से है मुझे देख कर।

के एक उम्र बिताई है उन्के साथ
चाहते अधूरी रखी है अभी मैने कई,
की एक नया दौर फिर से आपके साथ।

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15 MAY 2021 AT 11:29

इन्सान समय और अपनी सहूलियत के हिसाब से
शब्दो का अर्थ समझता है।
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3 MAY 2021 AT 18:13

बस रंगो का भेद मालूम नही था,
और लोग शक्शीयत अंधी बताते थे।

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12 FEB 2021 AT 8:39

किसी वक़्त के पहरे सी तुम,
संग तुम्हारे दिन से रात तक जिए,

किसी रूप के रंगत सी तुम,
संग तुम्हारे कितने मुस्कान भर जिए,

किसी कहानी की लिखावट सी तुम,
पढ कर तुम्हे ना जाने कितनी बार जिए।

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