Poet Krishan Saini   (कृष्ण सैनी"विराट")
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Joined 3 March 2019


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16 FEB 2023 AT 15:31

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5 JAN 2023 AT 23:46

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18 JUL 2022 AT 17:59

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18 JUL 2022 AT 17:56

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25 MAY 2021 AT 17:14

इंडिया वालो समझो थोड़ा, बाहर ना निकलो।
बचना है यदि कोरोना से, घर मे ही टिकलो।
जानते है इससे होगा, तुम्हे थोड़ा कष्ट।
फिर भी लाइफ सेव करो, तुम करो ऐड जस्ट।
सिक्योरिटी रखो टोटल, सेनिटाइजर यूज करो।
हैंडवाश हर घण्टे करके, कोरोना को फ्यूज करो।
टाइम स्पेंट करो, फैमिली के साथ।
बड़े हो तो बच्चो को, सिखाओ अच्छी बात।
बच्चों को भी ना मिलेगा, इतना अच्छा मौका।
खूब करो तुम धमाचौकड़ी,ना कोई रोका-टोका।
इंडिया इज द बेस्ट, दुनियां को बताएंगे।
मिलकर कोरोना को, जड़ से मिटायेंगे।

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17 APR 2021 AT 20:01

चुप हूँ, इसलिए नही की मेरे पास शब्द नही.....
बल्कि इसलिए कि अब मुझे पता लग गया है कि मेरे समझाने का आप पर कोई असर नही होता।

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10 AUG 2020 AT 6:55

यूँ ना छोड़ो हमें, बड़ा पछताओगे।
मिलना भी चाहो तो, ना यूँ मिल पाओगे।

अपने वश में सब, ना फिक्र कोई है।
दिल मे मूरत तेरी, ना जिक्र कोई है।
है ये तन्हा सफर, बस तेरा साथ हो।
मिलके संग-संग चले, और इश्क़ की बात हो।
इतना तड़पा तो हूँ, और कितना तड़पाओगे।
यूँ ना छोड़ो हमें, बड़ा पछताओगे।

मैं हूँ बंजर तो तुम, घनी बरसात हो।
हो मिलन अपना तो, तुम भी विख्यात हो।
तू ना समझे मगर, तु मेरी परछाई है।
तेरा संग ना मिले, तो सुख भी दुखदाई है।
गीत मेरे लिखे, तुम भी गुन - गुनाओगे।
यूँ ना छोड़ो हमें, बड़ा पछताओगे।

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25 MAR 2020 AT 17:20

हमने बहुत जिद की उनसे, उन्हें अपना समझकर।
पर परायो की तरह, उन्होंने दूसरी राह पकड़ ली।

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19 MAR 2020 AT 16:42

सॉन्ग है मैंने लिखे बहुत,
और लिख-लिख के फाड़ दिए
जिसमें भी आया नेम तेरा
सब गड्ढे में गाड़ दिए
तुझमें था ऐटिट्यूड घणा
कॉलेज म रोब दिखावै थी
मेरे प्यार को तन्नै ना समझा
मन्नै देख के भावा खावै थी
आज बदलगी किस्मत र
कितनों के बम्पर झाड़ दिए
सॉन्ग है मैंने लिखे बहुत,
और लिख-लिख के फाड़ दिए
जिसमें भी आया नेम तेरा
सब गड्ढे में गाड़ दिए

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28 JAN 2020 AT 10:40

सेवा कॉलेज में आया, तरन्नुम में मैं गाऊंगा।
भरी महफ़िल को अपने शब्दों से मैं, आज सजाऊंगा।
यही मौका मिला मुझकों, गुरु चरणों मे जाने का।
यही वो रास्ता यारों, परब्रह्म को पाने का।
यही यारों से सीखे है, मैंने जिंदगी के ये गुर।
यही से है मिला मुझको, मेरे गीतों का नया सुर।
कोई प्यारी हसीना भी, यहाँ नटखट सी देखी है।
यही पर प्रेम की चिड़िया, इन्ही पेड़ो पे चहकी है।
हमारा साथ ये सालों का, यही पे हो रहा खत्म।
फिर भी दिल की चाहते, कभी भी होंगी ये ना कम।
सेवा कॉलेज में आया, तरन्नुम में मैं गाऊंगा।
भरी महफ़िल को अपने शब्दों से मैं, आज सजाऊंगा।

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