(poet) Ganesh Dubey   (गणेश गोरखपुरी)
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Joined 14 September 2019


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Joined 14 September 2019
25 DEC 2023 AT 19:10

हाल कोई तो मिरा भी पूछ ले एक मर्तबा,

झूठ कैसे बोलना है, सीखना मैं चाहता।।



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1 NOV 2023 AT 20:00

चांद को भी देखना है चांद को तौहीन है ये
एक ही है चांद किस किस को नज़र आता फिरेगा

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8 MAY 2023 AT 11:40

मिले सब कुछ बिना मांगे उसे मन्नत कहा जाता
जमीं पर सिर्फ़ मां ही है जिसे जन्नत कहा जाता

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3 MAY 2023 AT 22:32

बारिशों में सिर्फ़ छातों को नही है खोलते अब,
आज मौसम का तकाज़ा है कि बालों को खुला रख।

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25 APR 2023 AT 13:00

गरीबों की मुहब्बत का नही है मोल कोई अब
वगर्ना देखते सारे जहां में संगमरमर तुम।।

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22 APR 2023 AT 10:07

चांद को देखा था किसी ने कल,
ईद तो आज चांद की भी है।

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17 APR 2023 AT 16:27

हाल कोई तो मिरा भी पूछ ले एक मर्तबा,
झूठ कैसे बोलना है, सीखना मैं चाहता।।

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8 MAR 2023 AT 15:03

पहले गुलाल फिर रंग लगा मनाए होली,
कुछ इस तरह भुलाया शिकवे गिले पुराने।।

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7 MAR 2023 AT 13:51

भार हैं दोनो उठाएं।
नाव देख़ो और पानी।

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4 FEB 2023 AT 21:47

इस गुलाबी महीने में, जैसे खिला है एक गुलाब,
आज हज़ारों की भीड़ में देखा, मैने एक गुलाब।

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