जिस्मों पर तुमने बरसों ज़ुल्म किया पर रूह आज भी आज़ाद है बेड़ियों में जकड़े रखा, दहलीज़ें लांघने ना दी, पर उन आँखों में उम्मीद आज भी बाक़ी है जंग आज भी जारी है, वह अबला नहीं, वह नारी है ।
“क्या करोगे बड़े होके?” सवाल ख़ास था, जवाब में पेशा चुन के, आम कर दिया। ना चुनते कुछ - तो शायद कुछ भी कर सकते थे। या, कुछ ना भी करते - तो शायद कमाल ही करते।