तुझे दुनिया की सारी खुशियां मुकम्मल होंगी, मगर कहीं भी मेरे इश्क के मरहम नही होंगे, तू हर किसी में ढूंढा करेगा हमे, पर अफसोस! गम ही गम होंगे इर्द गिर्द मगर हम नही होंगे।।
सुनहरे ज़ुल्फ ये रेशम के जाल जैसे हैं! हम लब ए इश्क के मद में बेहाल जैसे हैं! ना हमे इल्म ना कोई फिक्र उसकी रजामंदी का, मेरे खयालात ही उलझे सवाल जैसे हैं।
दश्त ए इश्क से कौन भला जिंदा निकले! ये तो यूं है कि बंद पिंजरे से परिंदा निकले! गुस्ताख कातिल के शिकार भी खैर हम हुए, फिर कत्ल के गुनाह में होके शर्मिंदा निकले।।