इक तलबार तुम्हारी तो, इक शमशीर जनानी की,
गर योद्धा हो रण के तुम तो,युद्ध धरा जनानी की,
गर पौरुष का मान तुम्हे तो,संघर्षों का ज्ञान उन्हें,
गर पर्वत व्यक्तित्व तेरा तो,सागर सा अपनत्व उन्हें,
गर बादल की गरज तुम्हें तो,विजली की झनकार उन्हें,
गर बरगद का तना तुम्हें तो,स्थिर जड़ उपमान उन्हें,
कुछ मंजिल का मकां तुम्हें तो,घर करने का भान उन्हें,
सृजन के आरम्भ हो तुम तो,किलकारी आधार उन्हें,
गर पालन का इल्म तुम्हें तो,पोषक का सम्मान उन्हें,
अब तो जग को जगना होगा,जगकर के प्रभात चुनें।
नर-नारी इक-दो के पहलू,"पूरक" बन सम्मान जिन्हें..।।
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