मिथिलाक व्यथा
बिसरिगेनऊ हम मिथिलाक शान
कतय गेल मोर। माछ मखान,,
लोरी गुम भेल, गुम भेल लगनी,
बिसरी गेनउ प्रातिक तान,
शूगा करय छल वेदक बखान,,
कतय गेल मोर। माछ मखान,,
सीता सन संतति छलि मोरी,
पाहुन छलइथ मर्यादा राम,
लोड़िक, सलहेस के कर्म भूमि,,
विद्यापति के छलइन दलान,
वीरक भूमि छल मिथिला धाम,,
कतय गेल मोर। माछ मखान,,
मंडन, अयाची बढाओल मान,
मधुर बोल, मुश्कइत मुख पान,
चुरा दही संग तिलक अचार,
भोजन में लागत विविध संचार,
संस्कार भूमि जल मिथिला धाम,
कतय गेल मोर। माछ मखान,,
आब ने पूछू मिथिलाक हाल,
दहेजक प्रथा बेटिक। काल,,
बाप लगाबी रहल बेटखक बोल,
कहुं। समइध कतेक भेल मोल,,
नारिक नहीं कतहुं सम्मान..
कतय गेल मोर। माछ मखान,,
Pathik
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