Parul Bhaktani  
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Joined 29 May 2021


Joined 29 May 2021
10 HOURS AGO

तुम्हारे ख़्वाब तुम्हारे हैं तुम्हें ही मुकम्मल करने होंगे,
उन्हें पूरा करने के जतन तुम्हें मुसलसल करने होंगे।

ख़्वाब पूरे न कर सको तो देखने का क्या फ़ायदा,
तुम्हें ख़ुद ही अपनी मुश्किलों के हल करने होंगे।

जितना बड़ा हो ख़्वाब उतनी मेहनत होगी ज़्यादा,
सूखे बांस भी तुम्हें महका कर संदल करने होंगे।

दिल में छुपा लेना पथ में मिली हर परेशानी को,
नित नए फैसले तुम्हें ख़ुद ही हर पल करने होंगे।

ख़्वाबों को पूरा करने की लगन सदा रखना 'पारुल'',
नाकामयाबी के विचार दिल से ओझल करने होंगे।

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16 HOURS AGO

मोहनलाल की एक छोटी सी मिठाई की दुकान थी। उसके परिवार में पत्नी, बेटा, बहू और एक छोटी बेटी रिचा थी।छोटी बेटी का रिश्ता एक अच्छे घराने में तय हो गया था।मोहनलाल ने यूँ तो शुरू से ही अपनी बेटी के दहेज के लिए काफी कुछ जोड़ कर रखा था लेकिन उसकी इच्छा थी कि वह बहुत धूमधाम से अपनी बेटी की शादी करें। लड़के वाले जानते थे कि रिचा के घर वाले बहुत ज़्यादा पैसे वाले नहीं है इसलिए उन्होंने किसी भी चीज की माँग नहीं रखी थी। लेकिन मोहनलाल अपनी बेटी को ज़रूरत का सभी सामान देना चाहता था इसी चिंता में शादी से कुछ दिन पहले ही उसे दिल का दौरा पड़ा वह समझ गया था कि शायद उसका बच पाना मुमकिन न होगा इसलिए उसने अपने घर वालों से कहा कि मेरे बाद भी जैसे मैं चाहता था मेरी बेटी की शादी वैसे ही की जाए। मोहनलाल की मृत्यु के बाद उसके एल.आई.सी. पॉलिसी के पैसों से रिचा की शादी धूमधाम से की गई। मोहनलाल ने मरकर भी अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करवाई।

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20 HOURS AGO

तेरे ही शरीर का अंश तेरी ही परछाई हूँ माँ,
खुशनसीब हूँ कि तेरी कोख की जाई हूँ माँ।

तेरे आँचल की छाँव में पलकर ही हुई बड़ी,
तेरा रंग रूप पाकर तेरी बेटी कहलाई हूँ माँ।

तेरी दुआओं से ही महफ़ूज़ पाया है ख़ुद को,
जुदा नहीं तुमसे वजूद चाहे हुई पराई हूँ माँ।

दिल के हर कोने में बसी है बचपन की यादें,
भुलाए से नहीं भूल पाती वो अँगनाई हूँ माँ।

जाने कैसे समझ लेती थी दिल की हर बात,
ये बात मैं आज तक भी समझ न पाई हूँ माँ।

तुमसा प्यार मिला नहीं कहीं भी'पारुल' को,
तुमसे बिछड़ कर कितना छटपटाई हूँ माँ।

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5 MAY AT 14:46

ये चाँद और तारे गवाह रहें हैं हमेशा से हमारी मोहब्बत के हमदम,
यकीं न हो तो इनसे ही पूछ लो हर जन्म में तुम्हारे ही रहे हैं सनम।

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5 MAY AT 12:09

असफलता अंत नहीं है, सफलता पाने तक चलना होगा,
सुबह के सूरज की तरह अस्त होकर भी निकलना होगा।

ज़िंदगी के ख़्वाबों को पूरा करने का रखना हौंसला तुम,
सफ़र की लग्ज़िशों में भी हरबार गिर कर संभालना होगा।

तुम्हारी ज़िद के आगे बदल जाएगा ये दौर-ए- आस्मां भी,
मंज़िल की तिश्नगी रखकर लक्ष्य की राह से गुज़रना होगा।

सुबह का सूरज भी अकेला आता है जहां को रौशन करने,
लक्ष्य हासिल करने केलिए अपना रहबर ख़ुद बनना होगा।

इस आसमां के आगे एक और आस्मां भी मिलेगा तुमको,
कुवत-ए-परवाज़ है तुझमें साहस करके ऊँचा उड़ना होगा।

ख़ुदा-ए-पाक बड़ा मेहरबान होता है अपने बंदों पे 'पारुल'',
परचम बुलंद होगा बस उसका शुक्र करना सीखना होगा।

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4 MAY AT 13:43

दामन में समेट कर तुमको मैं हर बुरी नज़र से बचाऊँगा,
ज़माने की क्या मजाल जब मैं तेरा पासबाँ बन जाऊँगा।

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4 MAY AT 10:08

मनचाही मंज़िल के लिए ख़ुदा के दर पर रहमत की आस पाने बैठी हूँ,
हिम्मत नहीं हारी मैंने अब तक बस कुछ देर ख़ुद को समझाने बैठी हूँ।

क्या  हुआ जो  पथ के काँटों से हो  रहें हैं  रक्तरंजित  आज पाँव मेरे,
फूलों के  पथ पर  कल चलने  के  लिए काँटों  को  सरकाने  बैठी हूँ।

उम्मीद की किरणों से करूँगी अपने मन की निराशा का अंधकार दूर,
अपने ख़्वाबों के चंदन से मैं पूरे ज़मी-आसमां  को  महकाने  बैठी हूँ।

देख  कर  भी  अनदेखा  करते  हैं  आज  सभी  अपने  और  पराए,
बस अपनों के दिए ज़ख्मो को दृढ़ संकल्पों की मरहम लगाने बैठी हूँ।

हासिल  करके  लक्ष्य एक दिन  निखर जाऊँगी  मैं  कुंदन की तरह,
मेरा  इंतजार  करना मैं  सिर्फ़  अपने भविष्य  को  चमकाने  बैठी हूँ।

तीर की तरह  सीने  पर  खाए  हैं ज़माने  के  दर्द  भरे  तंज  'पारुल' ने,
तोड़ा  है  सब ने  बहुत  मुझको  आज  मैं  ख़ुद  को  बनाने  बैठी  हूँ।

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3 MAY AT 21:08

दवा न कर सकी जो ऐसा दुआओं का असर देख रहे हैं,
दुआओं से मुनव्वर अपनी हर शाम-ओ-सहर देख रहे हैं।

हौंसलों को अपने मुश्किलों के आगे थकने ना देंगे कभी,
सामने अपनी ख़्वाबों की मंज़िल की रहगुज़र देख रहे हैं।

बुज़ुर्गों का साया महसूस होता है हर वक्त ही साथ अपने,
मुर्शिद की दिखाई राह पर अंजाम-ए-सफ़र देख रहे हैं।

अंधेरों की हुकूमत भी मिट जाती है दुआओं के असर से,
पत्थर मारे गए हैं फिर भी फले- फूले शजर देख रहे हैं।

माता-पिता की कैफ़-ए-दुआ से महरूम ना होना 'पारुल',
वजूद है शाख़ से जुड़े रहने में ही गुल- ए- तर देख रहे हैं।

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3 MAY AT 15:25

रोने से  बदलती  नहीं है  किसी की भी  तक़दीर,
बिगड़े हुए इस नसीब को तुम हँस कर संवार लो।

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3 MAY AT 12:27

समझ का फेर है वरना तुमने जो सुना हमने कहा ही न था,
नाराज़ थे तुम जिस काम से हमने वो काम किया ही न था।

बात पर विश्वास नहीं तो झाँक कर देख लो मेरी इन आँखों में,
बेगुनाही का सबूत मिलेगा इन आँखों में जो तुमने पढ़ा ही न था।

अपने ही तो थे हम तुम्हारे और तुमने गैरों पर यकीन कर लिया,
हमारे इस दिल में कोई और कभी भी तुम्हारे सिवा ही न था।

क्यों बे- सबब सी लगती है तुम्हारी हर शिकायत हमारे ख़िलाफ़
क्योंकि तुमने एक कदम भी हमारे साथ चलकर देखा ही न था,

'पारुल' की पाक मोहब्बत पर बिना सोचे इल्ज़ाम लगाया तुमने,
सदियां बीत गई लेकिन दिल का ये घाव कभी भरा ही न था।

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