जॉन,वो मिलने का तो कहती है,शिकायतों के ढेर पर
कैसे कहूँ,उसके हक़ की शिकायतें,अब तो है देर पर
कागज़,कलम से तो क्या,कसौटी से भी परखा न गया
वो कोई दर्द था,दर्द मिलता ही गया,दर्द की ही टेर पर
सब के बाद भी तो मैं एक उफ़्फ़ तक भी न कर सका
उसने क्या ही तो लिख दिया मेरी ही क़िस्मत के शेर पर
हो सके तो मेरा एक मुकाबला ही करवा दो दुनियावालों
सबकुछ ही तो उसपर लुटा दूँगा उसकी एक झूठी मेर पर
कोई वाह वाह करे,कोई ग़ज़ल पर दाद भरे,क्या फ़न है
ज़रा उसको भी तो संभालो,होश दो,उस एक मुहँ फेर पर
कौन उसे चाहता है,कौन उसे चाहेगा,यह प्रश्न भी है क्या
मुझे तो ताज्जुब हुआ है,ताज्जुब होता है उसके हेर पर
जा की अब तुझको जां,जानां या जानेमन तक नही कहना
मुक्कमल हुआ है अब मेरा भी सफ़र तेरी ही झूठी जेर पर
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