Pankaj Soni   (©✍pankaj soni 'pranay')
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pankaj.soni340@gmail.com
Joined 6 December 2016


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Joined 6 December 2016
7 HOURS AGO

यूँ क्या तमाशा है कि कौन बिकता है
अधूरे ख़्वाबो का पूरा सार बिकता है

देखी दुनियां तो बहुत ही छोटी लगी
इस दुनियां में तो ईमान भी बिकता है

मैंने बोली तो भरी थी इश्क़ बाज़ार में
हुस्न या गुलाम चौराहे पर बिकता है

छोटी मोटी वारदातें तो होती ही रहती है
बड़े से बड़ा रसूखदार पहले बिकता है

इश्तिहार भी दिया था कल अखबार में
जाना कि अब तो विद्वान भी बिकता है

कोई गुनाह मुझ से भी तो हुआ ही होगा
लिखने वाला भी तो क़लम से बिकता है

मेरे मौला!अब रहम कर,सज़ा माफ कर
क्या तू भी किसी मौत के हवाले बिकता है

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16 HOURS AGO

काश,काश की वो समझती प्रेम क्या होता है
उसके एक अनमने झूठे इंकार से क्या होता है

उसकी मीठी हँसी देख मन ही मन मुस्कुराता हूँ
उसके ख्वाबों में गले लगा लेने से क्या होता है

दूरियां भला कब किसी के प्रेम को मिटा सकी है
विरह में कोई प्रेम पत्र लिख लेने से क्या होता है

कोई जात पात,ऊंच नीच देखे भी दिखता नहीं
प्रेम में विवेक की चुटकी भर लेने से क्या होता है

हो न हो,कुछ तो है उसके भी दिल ही दिल में तो
भला मुझ को देख दिल धड़कने से क्या होता है

है अगर वो भी प्रेम की दीवानी इस दुनियां में तो
शक्ति को भक्तिरस कर लेने से भी क्या होता है

मुमकिन हो तो फासला और फ़ैसला जरूर रखना
आगाज़ में अंजाम की परवाह रखने से क्या होता है

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3 MAY AT 21:46

अगर बात नही है तो साथ नही है
उसका साथ होना जज़्बात नही है

कुछ बोले तो चुप रहना ही बेहतर
यह तो मेरी आधी पूरी तलाश नही है

अगर खो गया होता तो मलाल नही
साथ रखना भी तो इंतकाम नही है

बरसों से उसकी महोब्बत का प्यासा
हुस्न मेरी जिंदगी की पतवार नही है

कोई खुशबू तुमको भी आती है क्या
उपवन में खिला यह गुलाब नही है

कैसे कह दूँ की यह कांटा है या ज़हर
लिपट कर रोने वाला यूँ इंसान नही है

खैर,मैं निभा लेता हूँ,पेशा भी है मेरा
मुझ जैसा कोई दुकानदार भी नही है

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2 MAY AT 20:36

जॉन,वो मिलने का तो कहती है,शिकायतों के ढेर पर
कैसे कहूँ,उसके हक़ की शिकायतें,अब तो है देर पर

कागज़,कलम से तो क्या,कसौटी से भी परखा न गया
वो कोई दर्द था,दर्द मिलता ही गया,दर्द की ही टेर पर

सब के बाद भी तो मैं एक उफ़्फ़ तक भी न कर सका
उसने क्या ही तो लिख दिया मेरी ही क़िस्मत के शेर पर

हो सके तो मेरा एक मुकाबला ही करवा दो दुनियावालों
सबकुछ ही तो उसपर लुटा दूँगा उसकी एक झूठी मेर पर

कोई वाह वाह करे,कोई ग़ज़ल पर दाद भरे,क्या फ़न है
ज़रा उसको भी तो संभालो,होश दो,उस एक मुहँ फेर पर

कौन उसे चाहता है,कौन उसे चाहेगा,यह प्रश्न भी है क्या
मुझे तो ताज्जुब हुआ है,ताज्जुब होता है उसके हेर पर

जा की अब तुझको जां,जानां या जानेमन तक नही कहना
मुक्कमल हुआ है अब मेरा भी सफ़र तेरी ही झूठी जेर पर

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2 MAY AT 16:33

जीवन गया तो बस चला गया,साथ साथ महोब्बत चली गई
मैं मुर्दा हूँ कि जिंदा,एक आदमी की पहचान भी चली गई

वो जाते जाते न जाने क्या क्या साथ ले भी गया मुझसे तो
ज़माने बाद उसको देखा तो पुरानी याददाश्त भी चली गई

कल की ही बात है,हाथों में हाथ डाले पेड़ की छाँव में बैठे थे
और एक तेज अंधड़ में तो इस जिंदगी की छाँव भी चली गई

मैंने यह तो नहीं चाह था कि मेरा किसी से कोई बैर बंध जाए
जिंदगी जिस डोर से बंधी थी वो डोर भी हथेली छुड़ाकर चली गई

समझौते,पंचायती,कानून और सुलह के लिए वक़्त कौन दे
घड़ी की एक सुई भी तो जिंदगी में चालीस के पार चली गई

बहुत गुज़र-बसर के बाद देखा,जाना की अब तो सुकून हो
महसूस हुआ की कम्बख्त सुकून के पल में ही यारी भी चली गई

बस एक बार यह दुनिया बनाने,बसाने का हुनर ही आ जाए
इबादत के बाद हथेलियां खोली तो हाथों की लकीरें भी चली गई

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30 APR AT 22:04

संघर्ष तो है
है अगर झोली में असफलता
कुछ तो है
अनुभव,अनुभूति और अनन्त चेतना
सब तो है
फिर,निराश क्यूँ है ?
उठ,खड़ा हो,तब तक चल
जब तक पैरों पर पथ है,
जीवन है तो
कुछ तो है
संघर्ष तो है !!

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29 APR AT 21:47

खिदमतगार होता अगर तुम हाँ कहती
पनाहगाह में होता अगर तुम हाँ कहती

जंगलों में भी कौन महल बनाता है भला
विरानें में बस्ती होती अगर तुम हाँ कहती

नदियों तलाबों का पानी भी पीते है लोग
जुबाँ लबालब होती अगर तुम हाँ कहती

मौत से भी तो किनारा कर लिया है मैंने
जिंदगी आसान होती अगर तुम हाँ कहती

कोई लोग मुझे बताते है,तुम ख़ुश बहुत हो
ख़ुशी में चार चाँद लगते अगर तुम हाँ कहती

प्रेम पत्र आज भी लिखें जाते है ज़ुदा ज़ुदा
कहानी भी लिखी जाती अगर तुम हाँ कहती

किसी दिन इन उन सब बातों का हिसाब करतें
मुलाकात भी तय होती अगर तुम हाँ कहती

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18 APR AT 9:36

लैला मजनूं,हीर रांझा,सोनी महिवाल यूँ ही तो नही
करे खुद को क़ुर्बान इश्क़ महोब्बत में यूँ ही तो नही

कौन कौन हुआ जो यह दमखम दिल में रखता है
मेरा भी तो जीने से पहले मर जाना यूँ ही तो नही

कौन,तुम?,तुम भी हो क्या?तुम भी क्या तुम हो
तुम्हारा होना इस कतार में नामजद यूँ ही तो नही

ठीक है,तुम्हारी महोब्बत स्वीकार,हुकुम स्वीकार
आएं जो दिल दर पर महोब्बत लिए,यूँ ही तो नहीं

अगर इजाज़त हो तो,पैग़ाम तुम्हारे दिल को देते है
मुझ को भी स्वीकार करे धड़कनें जो,यूँ ही तो नहीं

सदियों बाद जब नाम हमारा कोई पुकारे इश्क़ में
इश्क़ की दास्तां में तुम और मैं,हम,यूँ ही तो नहीं

ख़ैर,अभी तो जीने का मौसम है,मुलाकात दुलारी हैं
बिछड़ने की भी बारी,क़ुर्बानी की रवानी,यूँ ही तो नहीं

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17 APR AT 14:04

दाग़,बेदाग़ जिस्म मिलते कहा है
बागों में अब फूल खिलते कहा है

सब तो सब पैसों का खेल है यहां
बिना पैसो के रिश्तें निभते कहा है

पत्थर भी भगवान हो सकते यहा
मंदिर मस्जिद झूठ से चिढ़ते कहा है

माजरा क्या है इस नई दुनियां का
वो पुरानी दुनिया के फ़रिश्ते कहा है

उधार माँग कर लाया था चार दिन
दिनों के बाद भी संग बिछड़ते कहा है

कोई झूठ को ही एक इशारा कर दो
सच्चे,झूठ पर तो बिफरते कहा है

क्या यह ग़ुलामों की बस्ती का घर है
उठे हुए सर बाजारों में निकलते कहा है

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15 APR AT 11:29

मनचाहे से लेकर अनचाहे तक का सफ़र,महोब्बत तो नही
गुलिस्तां बहार और न काँटो की सेज हो,महोब्बत तो नहीं

पाक रिश्ता भी खुदा से और जुबाँ में फर्क,ये दोहरा चरित्र
गले मिलना और पीठ पर छुरी चलाना,महोब्बत तो नही

हजारों लाखों दीप जले मगर एक दीप में लौ को बाती नही
सूरज निकले और जिस्म को तपिश न हो,महोब्बत तो नहीं

बचपन में एक खेला करते थे लुका-छुपी,ये कैसी सियासत
लुका-छुपी के खेल में तो पर्दाफ़ाश न हो,महोब्बत तो नही

ख़याल जो सौ बार अधूरे रहें,पर ललकार में धार तो रहे
एक वार में ही जो दुश्मन न हो घायल ,महोब्बत तो नही

कारवां क्या,यूँ काफ़िला भी निकलेगा,बिगुल बजने तो दो
जो दुश्मन से जंग हो और शहादत न हों,महोब्बत तो नही

बाजियां हार जीत की,जंग मैदान में,सुलह एक परिवार में
बच्चें हँसते खिलखिलाते न रहे तो महोब्बत तो नही,नही !

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