जब कभी भी मैं बहुत खुश होता हूं
तो लगता है कुछ कमी है इस खुशी में,
कुछ अधूरा अधूरा सा लगता है,
समझ में नहीं आता कि अकेले खुशी
ज़ाहिर कैसे करूँ?
फिर सारी खुशियों के बादल
उमड़ते हुए तुम्हारे सिर के ऊपर
मंडराने लगते हैं
मानों हवाएं उन बादलों को तुम पर
बरस जाने को झकझोर देती हैं,
पर फिर तुम्हारें बाहों का पनाह ना पाकर
वो बादल बिखरने लगते हैं
और अपना रुख मोड़ लेते हैं,
फ़िर उदास मन से धीरे धीरे आगे बढ़ते
वो बादल बूंदाबांदी करने लगते
और आंखों से टप-टप गिरते हुए
मन को थोड़ा सा सींच जाते हैं।
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