तुम्हे जिस बात की खबर हीं नहीं, उसकी शिकायत कौन करे, दुआएं मुकम्मल हो न रही, अब और ईनायत कौन करे, रिश्तों में दुरियां इस कदर है हावी हो रखी, की दोनो है अडिग बातों पे अपनी, अपनी बातों से आखिर, समझौता फिर कौन करे!
जब उलझनों में खुद को, उलझा सा मैं पाता हूं, लोग पूछते हैं वजह फिर भी, जब लोगों से छुपाता हूं, तुम्हे सोचता हूं, तुम्हे खोजता हूं, तू दिखती ना जब पास मेरे, मैं थोड़ा सहम सा जाता हूं, आज भी सब कुछ वैसा हीं है, ज़िद्द वही सपने भी वही, पर दिल ढूंढता है जवाब यही, क्यूं साथ मेरे अब तू नही!
बिताए दिन तेरे साथ जो भी, मेरी आंखों से वो मेले नही जाते, पर वो झूठे वादों पे ऐतबार वाले, खेल भी मुझसे अब खेले नहीं जाते, निभा लिया झुक कर कई साल साथ तुम्हारे, अब तुम्हे छोड़ना हीं होगा लगता है, तुम मुझसे अब झेले नही जाते!
कहीं पे हौसला मिला तो कहीं, उम्मीदें सैकड़ों टूटी हैं, मंजिल राह देख रही मेरा और, किस्मत खामखां हीं रूठी है, हँसी है लबों पे मेरे जैसे, सिर्फ दिखावे की, ये मुझको हीं पता की मेरी हर, मुस्कान झूठी है!
कभी जो फुरसत में होंगे तब, उलझनों को अपनी सुलझा कर देखेंगे, याद करेंगे बचपन को और, पत्थर नदी में फिर से फेंकेंगे, अधुरे ख्वाइशों को छोड़ रखा है, किसी एक खास मकसद से, निपट लें जिम्मेदारियों से पहले, जिंदगी तुम्हे फिर जी कर देखेंगे!
थे गुज़रे जो तन्हा ख्यालों में तेरे, मेरी सर्द रातों का एहसास तुम हो, था इसमें भी मुझको सुकून बड़ा की, मेरी तलाश मेरी आखिरी आस तुम हो, गए जब थे मुझको तुम छोड़ के तनहा, टूटा तो मुझमे भी था कोई किस्सा, मेरा ये भरम की मेरे पास तुम हो!