" रमता जोगी "
अक्सर लोग दुसरे के ख्यालात से अपने हालात माप लेते है।
करवट बदलती राहो से औकात माप लेते है।
समुंदर सी दिली ज़मी को, अंजुल् भर, सर जमी माप लेते है।
वक्त की किताब, को इसके पन्नों का लिहाफ
माप लेते है।
कवाते तरूफ की होती है। लोग शख्शियत का हिजाब माप लेते है।
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