जिंदगी बहुत बेरंग हो गई है
लड़ी ना जाये, वो जंग हो गई
भटकते है दरबदर
जिस ख़ुशी की तलाश में
वो ख़ुशी अब ख़ुशी ना रही
जि का जनजाल हो गयी है
जिंदगी बस भाग-दौड़ है
और ग़मों का समंदर है
सब खोकर भी कुछ नहीं मिलता
लगती ये बंजर है
ये आलम है हर घड़ी
मन में इक सवाल है
ये जिंदगी, जिंदगी है?
या ग़मों का दरबार है?
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