खुशियों के इस सफर में, गमों ने किया है बसेरा।
रास्ता भटक गया हूँ मैं, कारवां छूट गया है मेरा।
मैं दर-दर ठोकर खाता हूँ, हर कदम पर गिरता जाता हूँ।
कोशिशें करता हूँ लाखों मैं, पर फिर भी संभल न पाता हूँ।
खोया है उजाला जीवन का, है चारों ओर अंधेरा।
रास्ता भटक गया हूँ मैं, कारवां छूट गया है मेरा।
जब मिलता कोई मुसाफिर है, मैं संग उसके हो लेता हूँ।
किसी मोड़ पर कोई अजनबी,जब मुझको छोड़ के जाता है।
मैं गुजरे राह को तकता हुआ, खुद को तन्हा सा पाता हूँ।
न पता न कोई ठिकाना है मेरा, जहाँ रुके वहीं है डेरा।
रास्ता भटक गया हूँ मैं, कारवां छूट गया है मेरा।
हर ओर अजनबी दिखते हैं, रहा न अब कोई भी मेरा यहाँ।
न रात अंधेरी कटती है, न होता है अब सवेरा।
बेबस सी है जिंदगी अब तो, हर ओर से मुसीबत ने घेरा हैं।
रास्ता भटक गया हूँ मैं, कारवां छूट गया है मेरा।
-