नित-नित,पल-पल, क्षण-क्षण सृष्टि का उत्कर्ष है। जागृत,जीवंत, मनसचेतना की स्वीकृति ये सहर्ष है.. जैसे ही मेरी आँख खुली, अद्भुत, अनुपम, अभिनंदित प्रत्येक दिवस की उषा किरण! मेरा तो नव जीवन, नव वर्ष है। पाण्डेय सरिता🙏🙏
यथासंभव आवाज़ उठा री ओ औरत! सरकारी या निजी..! लिपा-पोती किए गए, चमचमाते अस्पतालों के चकाचौंध की धज्जियाँ उड़ाते; क्षत-विक्षत खिड़कियाँ-दरवाजे, जर्जर,घृणित,बदबूदार शौचालय दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है ओ औरत! पेट की थैलियाँ फट जाने की हद तक बर्दाश्त करने की विवशता? शिक्षिता-अशिक्षिता,ग्रामीण-शहरी, युवा-वृद्धा क्या यही हक-अधिकार तुम्हारा है?
हहर-घहर! टिपिर-टिपिर! गहन-गंभीर धुन से जुड़ा अभिमंत्रित मंत्रों सा यह पावन है। सुकुमार प्रकृति के तन-मन पर पड़ा मनमोहनी, मनभावन है। दिन-दोपहरी,ढुलक जो ठहरी यह ओस नहीं, सावन है।
बड़े यत्नों से पालित-पोषित लूटे सपने दुकान सी। तोड़ती हौसला घर बनने से पहले ही विध्वंसक आतुर चुनौतियाँ, अनगिनत समस्याएँ चट्टान सी। छोटी दुनिया बसने से पहले हर रोज रंगदारी वसूलने आ धमके पहलवान सी। जलते-तपते,बढ़ते-थमते, रंग-रूप ले उड़ी, भाप बनकर जा उड़ी, चोटिल तन-मन पर छिली मुस्कान सी। पाण्डेय सरिता
मत उगे, हृदय पर तुम्हारे मेरे प्रेम का पौधा! मगर उगे तो सही, किसी रूप में कहीं, बनकर योद्धा! कोटि-कोटि असीम-अनन्त जीवट-उत्कंठित भवितव्यता का। ऊर्जस्वित प्राण लिए प्रतीक जीवन की अनन्त संभाव्यता का।