जब मौत से गले लगाना चाहा सहम जाता हूं ये सोचकर क्या होगा ज़िन्दगी को विराम देकर ? अपने चाहने वाले बहुत रोयेंगे मौत से पहले मैं स्वयं रो पडूंगा ।।
दरख़्वास्त करता हूं अपने आंखों से सच्ची मोहब्बत आखिर करता कौन है ! आंसू बहाने वाला ये होता कौन है ! अक्सर खिड़की बन्द रखता हूं मोहब्बत-ऐ- शिकस्त लोगों से छुपाना चाहता हूं ।।
न कल चाहता हूं न आज न किसी की मोहब्बत में गिरफ्तारी , जहां सिर्फ जल्दी बड़े होकर मनमर्ज़ी करने की ख़्वाहिश थी, मोहब्बत से हारा हुआ,आज अपना बचपन फिर चाहता हूं छत पर बैठे उसके लिए खत लिखता वो सड़कें वो छत वो मौसम वो किताबें मोहब्बत की वो सब गवाह है, अब बस ! खिड़की बन्द कर अपने अकेलेपन के साथ मर जाना चाहता हूं।।
लगता है कि अब आत्मप्रेरणा की जरूरत है खिड़की खोल कर बैठ जाता हूं बाहर रोशनी बहुत है, सारा तमस तो मेरे अन्तर्मन का है मेरे हृदय को स्पर्श करने वाला मौत है या मोहब्बत क्यूं न एक बार फिर जी कर देखता हूं ।।