विस्तृत नील गगन
देख रहा है
स्तब्ध होकर
धरित्री का वो चंद्रमा
जो बिखेर रहा है
अपनी मुस्कान से
चारों ओर ज्योत्स्ना
और दिन भर के
अथक प्रयास के बाद
जब नहीं पहुँच पाता
है उस चंद्रमा के पास
तो ओढ़ लेता उसका मन
कालिमा की चादर
किंतु अगले दिवस
फिर उठ पड़ता है
इस आशा में कि
संभवतः आज मिल जाए
उस शशि का सान्निध्य।।
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