नफ़रत और दिखावे की दुनिया मै 🤐   (stranger for all)
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Joined 30 March 2019


Joined 30 March 2019

"कितना भी भिड़ जाओ खुद से
किस्मत अापका हौसला चुरा ही लेती है ...

और चुराये भी क्यो ना ये किस्मत भी
मुफ़लिसी कि मौहताज नही होती ...

हर पल देखा है मैने इसे मुझको छलते हुये
आज फ़िर से किस्मत के छ्लावे को अहसास किया है ...

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"वक्त की गुजारिश थी परिन्दे के पर तोड़ना...
वक्त की कोशिश होती तो कब का तोड़ दिया होता...

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"ज़िन्दगी थोड़ी सी ही सही वेपरवाही सिखाती बहुत है...
हाँ थोड़ा सा वक्त बाँध कर मगरुरियत सिखाती बहुत है...

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सच ये देश सिर्फ़ पुरुष प्रधानता का है
इस पुरुष प्रधान देश में
मैने पुरुष की प्रधानता को महसूस किया है !
अक्सर पुरुषों ने उस वक्त अपनी प्रधानता दिखाई ...
जब मैने अपनी हार को और
अपने घर की कमजोरी को सर आंखों पर रखा...
उस वक्त मैने अपने घर की सबसे बड़ी हार को महसूस किया...
हाँ मेरे घर मे कोई पुरुष नही
बस इस छोटी सी बात पर
सभी ने मदद के लिये अपने हाथ नही बढ़ाये ...
बिन अल्फ़ाजो के समझ गयी थी उस वक्त
इन सबके इस व्यवहार का कारण क्या है...
सच ये देश सिर्फ़ पुरुष प्रधानता का है ...

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"माहौल बिगड़ गया मेरे उस घर का
जिस घर मे मैने कभी उम्मीद की थी
शायद वक्त बदल जाये ...
वो वक्त तो नहीं बदला
लेकिन अब कोई नयी उम्मीद नही रही ...

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