मैं
छिपी हुई योग्यताओं को अब पहचाना है,
समय रहते मैंने आज अपनी प्रतिभा को स्वीकारा है,
लगा बहुत समय, समय की धूरी पहचानने में,
पर कहते है ना देर से सही,पर दुरूस्त अभिज्ञान पाया है,
भरते-भरते अरमानों का घड़ा दूसरों का,
आज मैंने भी स्वयं के लिए समुद्र मंथन कर डाला है,
पता नहीं क्या खोया पाया मंथन में मैंने,
पर चिर आनंद आत्मा को दिला पाया है,
लेती हूँ प्रण अब नहीं उपेक्षा स्वयं की सहूँगी,
मैं थी, मैं हूँ ,मैं ही सर्वोपरी हमेशा रहूँगी,,,💞
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