Nivedita Joshi   (रोचक_मुसाफ़िर)
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In a world of Helter-Skelter a travelling aloof soul ☯️
Joined 5 November 2022


In a world of Helter-Skelter a travelling aloof soul ☯️
Joined 5 November 2022
13 FEB 2023 AT 20:24

रात के राही जाने क्यों बनते हैं..! शायद चांद के पास चमकता वो तारा जो बदलते गुजरते लम्हों में अंत तक साथ की उम्मीद जगाता है, या शायद दूर टिमटिमाती घरों के बल्ब की रोशनी उम्मीद को साथ रखती है, या अंधेरों में जानी पहचानी राहें भी अंजान रास्तों का मज़ा देती है या जाने पहचाने रास्तों को नजरंदाज करने में सहूलियत रहती है। शायद ये मसला हो की नया सवेरा नई जगह में ज्यादा खुबसूरत लगेगा या शायद अपनी जगह से दूर जाने की तकलीफ़ ज़माने को ना दिखे। वजह - बेवजह हम भी शायद बन रहे हैं.. राही रात के..!!

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14 NOV 2022 AT 10:09

सुकून की हर राह ना जाने क्यों बचपन को ही जाती है।

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6 NOV 2022 AT 8:11

शिक़ायतें तो कभी भी वाज़िब ना लगती थीं..
अब मोह भी रास नहीं आता..।

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5 NOV 2022 AT 22:11

जुनून को जुगनू सा रखो, यूं ही रातें खुबसूरत कर देगा..!!

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5 NOV 2022 AT 22:02

ख़ुशी , ग़म , नाराज़गी , अफ़सोस, मुहब्बत, हिम्मत, इक़रार , इंकार , रोष , आक्रोश... क़लम से।

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