मन , बहुत बेचैन है , किसे बताऊँ
इस दो पल की जिंदगी ,कैसे बिताऊँ
इन्तेहाँ हर पल ,जकड़ी है जंजीर की तरह
चल रही सवालों से, खुद को कैसे समझाऊँ
मन बहुत बेचैन है किसे बताऊँ....
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तलब है हँसी की ,गम के बादल कैसे हटाऊँ
रौशनी की झलक उम्मीदें देती है,
इस अँधेरी रात को कैसे भगाऊँ
मन बहुत बेचैन है किसे बताऊँ ...किसे बताऊँ🍁
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