NITIN KUMAR KUSHWAHA   (विश्वरथ नितिन)
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Joined 17 January 2020


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27 APR 2023 AT 2:20

एक कंधे पर सर रख कर सोता रहा
एक धागे में ख़ुद को पिरोता रहा
कब नींद आई ये पता भी ना चला
इन लम्हों में ख़ुद को मैं खोता रहा

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10 MAR 2023 AT 22:11

एक नज़र में ही सिमट कर रह गए
अनजान बनने की ऐसी तलब जो उठी
ना जाने किन रास्तों में भटक कर रह गए
मोहब्बत भी नींद से जैसे सो कर उठी

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10 MAR 2023 AT 21:45

बदलाव के धार में बहते हुए चले
दो पल के सुकून को ना समझा था
लड़खड़ाते रहे ये क़दम तुम्हारे ऐसे
कुछ सच ये भी था, कुछ सच वो भी था

काले बादलों में जैसे चमकती है दामिनी
पल दो पल में मौसम कुछ ऐसा बदला था
ना रोक सके उस अनजाने शख़्स को
कुछ सच ये भी था, कुछ सच वो भी था

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9 FEB 2023 AT 16:04

बेखबर चलते इन रास्तों पर
एक रुकने का ठिकाना चाहिए
धूप छांव भी मिल गई है
अब जो किसी से ना मिला वो तुझसे चाहिए

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18 JAN 2023 AT 0:39

"कुछ किस्से"

बेचैन है वक़्त के हिसाब से
जवाब भी ना मिले लाख कोशिशों से
अब उस दौर में दाख़िल हुए गुम से
समझ जो आए तो पढ़ लूं वो पन्ने किताब से

जो चाहिए कुछ ज़्यादा तक़दीर से
तो संजो कर रखें उसे हिसाब से
महके तो इन वादियों में हम भी ठंडी हवाओं से
पर वजूद ही मिट गया टकराके गर्म हवाओं से

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14 JAN 2023 AT 1:03

अर्थ शास्त्रम् व्याघ्र सलिलम्
वातावरण प्रधाने अवलोक व्यसितम्
नभचर आकाशे विलोपितम्
अर्ध रूपेण मंत्र मानसे पल्लवितम्

सर्व सिद्धि प्रदायिनी अवस्थितम्
माघ मासे शीत निशा प्रवस्थितम्
दिवाकर निधि प्रकाशे रचितम्
काल काले विनाशने प्रकृति नवोदितम्

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6 JAN 2023 AT 0:04

"कहीं ना कहीं"

थाम लो इन भावों को अपने
ये बह ना जाएं व्यर्थ कहीं
आगोश़ में रहने दिया तो
बहक ना जाएं हम कहीं

ख़्वाबों में ना डूबे रहना
कोई ख़्वाब ना चुरा ले कहीं
हाथ मसलते रह जाओगे
ये क़दम जो ना संभाले कहीं

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31 DEC 2022 AT 2:09

"कुछ ना कहना"

आंखों में छुपकर बैठे सपनों की तरह
समा गए तक़दीर में तो क्या कहना
आसपास की बातों में तुम उलझे रहो
जो बीत गया ये पल तो फिर ना कहना

इन ठंडी ठंडी रातों में सरगोशी की तरह
जो तुम मन ही मन शरमाए तो क्या कहना
रोक लिया जो खुद को इस पल में तो
जो लौट ना पाओ ऐसे तो फिर ना कहना

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22 DEC 2022 AT 0:35

"ये रात"

ये रात है ख़ामोश सी
जैसे कहना मुझसे कुछ चाहे
पर शंका में घिरी हुई सी
करती है वही जो वो चाहे

सर्दी के मौसम में गर्माहट सी
लाए हर मौसम जो वो चाहे
तूफ़ानों में शांत घटक सी
खोले सबके राज़ जो वो चाहे

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16 NOV 2022 AT 0:23

"वो दूर देश से आई है...."

महक जो फैली फूलों की
कुछ राज़ छुपाकर आई है
अनजाने में ना जाने
किसने ये बात बताई है
मुझसे मिलने की ख़ातिर
वो दूर देश से आई है....

नवरंगों में सजी हुई है
श्रृंगार जो करके आई है
मंद मंद ये पवन के झोंके
उसने जो शीतलता बरसाई है
मुझसे मिलने की ख़ातिर
वो दूर देश से आई है....

प्रातः काल की बेला में
चिड़िया भी गुनगुनाई है
उठो, जागो, और क़दम बढ़ाओ
जीवन ने ली अंगड़ाई है
मुझसे मिलने की ख़ातिर
वो दूर देश से आई है....

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