पन्नों के सिवा पास हमारे , क्या ही बचा होगा?
शायर का दर्द है,सिर्फ शायरी से ही बयाँ होगा।
जी उठे , तुमसे मिलकर कई बार इसी मोड़ पर,
अब जो जा रहे छोड़कर,तो मरना भी, यहाँ होगा।
अश्क लिए,आँखो में बोल गया फिर मिलने को वो,
पता है हमें भी ,अब मिलना फिर कहाँ होगा।
लोग कहते हैं,हम अलग हैं,हमारे मज़हब अलग है,
यूँ पहचान जाते हैं वो,हमपर कोई तो निशाँ होगा?
दुनियाँ के कायदों ने सिर्फ अलग ही किया है,
क्या इश्क़ करने वालों के लिए दूसरा कोई जहाँ होगा?
मुक़द्दर लाएगा हमें साथ कभी तो , कहीं तो ,
यहाँ ना सही , मिलना हमारा फिर वहाँ होगा।
उनके निक़ाह का बुलावा आया है, रक़ीब के घर से,
हम जाएँगे तो सोचो वहाँ का, क्या ही समाँ होगा?
नदियाँ बिछड़ कर पर्वत से , डूब मरती है सागर में,
शायद हाल-ए-दिल महबूबा का भी,ऐसा ही रहा होगा।
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