हर क़दम पर बदलती रंग,
फसलों को देती जन्म,
हम को खिलाती अन्न,
पानी को खुद में समाती,
पेड़ पौधों को फिर उगाती,
हमें स्वच्छ पर्यावरण दिलाती,
गर्मियों में धूल बन उड़ती,
मरुस्थल में रेत कहलाती,
हिमालय पर कंकड़ बन जाती,
फिर बारिश आते ही अपनी खुशबू से महकाती,
कहीं काली पीली लैटेराइट लवणीय नामों से जानी जाती,
कटते पेड़, बहती मिट्टी,
कांक्रीट से बनते मकान,
ख़त्म कर रहे मिट्टी की पहचान,
कर रहे मिट्टी का तोल मोल,
भुल गए हैं कितनी है मिट्टी अनमोल।
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