Nisha❣️Shiv Shakti   (Nisha bissa)
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Joined 16 October 2020


Joined 16 October 2020
12 FEB 2022 AT 15:50

एक आवाज....
जो सब पर असर कर गयी
हर मुस्कुराहट पर गम का बसर कर गयी

हाँ वो....
हर आवाज को जहर कर गयी
सब पर खुद का वो ऐसे पहर कर गयी

हाँ वो....
हर वक़्त को खुद की खबर कर गयी
सुना कर खुद की आवाज वो कहर कर गयी

हाँ वो....
सब के जीवन को ही बंजर कर गयी
कैसे वो खड़ी इमारतों को खंडर कर गयी

हाँ वो....
मेरे कानों से दिल का सफर कर गयी
क्यों वो खुद को सब नजरों में नजर कर गयी

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20 JAN 2022 AT 12:53

मैं हूँण तेरे शहर ते दूर
जा री हाँ...!
इक सांस तेरे नाम
दी ले के
हो के बस खुद नु मजबूर
जा री हाँ....!
छड़ के जान अपनी नु
कुछ इस तरह
तेरी यादा नु ले के
जा री हाँ...!
हाँ जी..! तेरी नाज़
तेरी नूर जा री हाँ..!

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17 JAN 2022 AT 17:00

मत भूलो पापा भी
पिता होते है..😊
वो भी एक माँ से जन्मे
उनका ही हिस्सा
होते हैं...🙏
Caption...👇👇

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13 JAN 2022 AT 12:14

ऐ ज़िन्दगी माना तू मेरी हैं...!
पर मेरे लिए तू कुछ भी मत करना
बस मेरी दोनों माँ से
तू बहुत सारा प्यार करना
क्योंकि मैंने उन दोनों
को खुद से ज्यादा तुझसे प्यार
करते देखा हैं...
तू कभी भी उनके कहे को
इनकार मत करना
कभी भी तू इन दोनों को नाराज
नहीं करना
मैं तुझे कुछ नहीं कहूँगी तू कभी
उन्हें नजरअंदाज नहीं करना
तू उनकी हर डांट से प्यार करना हर
बात का सम्मान करना फिर
देखना साथ तू भी संवर जाएगी
बस ये मुझ पर तेरा एक
उपकार करना.....!

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11 JAN 2022 AT 12:35

गुमनाम ज़िन्दगी में मुझे हर नाम पर
गहरे काले बदलो का छाया अँधेरा लगे
एक छोटा हिस्सा भी सब में खुशी का
होना मानो यह गुमनाम सा सवेरा लगे

पहचान इस ज़िन्दगी की फिर गुमनाम
सी सबकी एक समान मुझे कहानी लगे
कभी उजड़ी उजड़ी सी आस में मानो ये
मन मेरा बस रहवासी बनवासी सा लगे

कभी चले ऐसे जिंदगी जैसे बहती हुई
नदियों सी यह बढ़ती हुई चली ही चले
जब जब देखूँ मैं एक पल ज़िन्दगी को
कुछ गहराई से हर दम मुझे प्यास लगे

क्यों इस गुमनाम सफ़र में मुझे नाम ये
जिंदगी का सफ़र बहुत ही कठिन लगे
इतनी मेरे पास हो कर भी ज़िन्दगी मुझे
क्यों यह इतनी खुद ही मुझ से दूर लगे

कभी दर्द से लिखा हुआ किसी का मानो
बहुत पुराना एक इतिहास की पहचान लगे
पर पहचान इसकी इतनी आसान भी नहीं
बस यह एक मन का ही सरल एहसास लगे

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9 JAN 2022 AT 10:58

साथ अपनी मुस्कुराहट लिए.....
मैं वक़्त के साथ चलते जा रही हूँ
हाँ थोड़ा बदल रही हूँ
थोड़ा संभल भी रही हूँ
हर मोड़ से मैं मिलते जा रही हूँ
कोई रुक रहा हैं
कोई आगे निकल रहा हैं
मैं गिरते उठ कर चलते जा रही हूँ
जो साथ चल रहा हैं
वह चालाक बन रहा हैं
मैं भर सांस लंबी चलते जा रही हूँ
कोई पीछे का भुला जा रहा हैं
कोई आगे का तोला जा रहा हैं
मैं सब याद किये लिखते जा रही हूँ
कोई गम दिये जा रहा है
कोई आंसू पिये जा रहा हैं
देख यह सब में सहमे जा रही हूँ
कोई अँधेरो की बस्ती बता रहा है
कोई उजालों में दर्द दिखा रहा हैं
मैं कर्मों का खेल समझते जा रही हूँ
बस मैं तो वक़्त के साथ चलते जा रही हूँ

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8 JAN 2022 AT 21:22

काश आप होते..
काश आप होते मुझे फिर ऐसा कभी एहसास ना होता
सबकी मुलाकातों में ये एक एकांत मेरा खास ना होता

काश आप होते तो उन उजालों में यूँ अँधेरा पास ना होता
गहरे इस अँधेरे के साथ पर मुझे कभी विश्वास ना होता

काश आप होते तो यूँ थमी हुई साँसों का साथ ना होता
मेरी हर यादों में कभी तुम्हारी यादों का यूँ नाम ना होता

काश आप होते तो मेरी हर खुशी में ये दर्द पास ना होता
और ये मन मेरा मेरा ही जो बना मेहमान,कभी ना होता

काश आप होते तो ये सफ़र मेरा कभी सुनसान ना होता
आपके होने से ही तो था सफ़र काश ये गुमनाम ना होता

काश आप होते तो ये शब्द काश मैंने भी लिखा ना होता
और यूँ लिख आपको जताने का कभी भी सोचा ना होता

काश खुदा को दिखा होता मेरा भी कुछ अधूरा ना होता
ज़्यादा नहीं ये होता तुम्हें मेरे नसीब में काश लिखा होता

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6 JAN 2022 AT 13:56

तन्हाई और दर्द की दास्तां से जो हैं पूरा भरा
पड़ा वो मंजर है दिखता तेरे ही इस शहर में
यहाँ चल इतना बनावटी और दिखावे की
दुनिया का तो हाँ वो सब हैं इस तेरे शहर में

रोना भी चाहे तो मेरे आंसू भी नहीं है आते
ऐसे दुःखो का ख़ंजर पड़ा इस तेरे शहर में
सब रोये जा रहे हैं अपने अपने गम में यहाँ
पहले से ही इतना ग़म पसरा है तेरे शहर में

जो तेरी जिद में ना होते हम तो कभी ना होता
मेरा यहाँ आना तेरे इस बेजान से पड़े शहर में
हम पहले जान जाते तो मुझसे बदनाम ना होता
ना होती चर्चा इतनी क्या कुछ है तेरे शहर में

शोर इतना यहाँ कि खुद की आवाज को दबाना
होता है खोना होता है यहाँ खुद को तेरे शहर में
धुंध इतनी की खुद को पहचानने के लिए खुद
को ही चिल्लाना पड़ता हैं तेरे धुंधले से शहर में

मेरी तन्हई में सारी उम्र जिक्र मे रहेगा तेरे साथ ये
तेरा शहर सब को भुला पाऊँगी पर नहीं जिसे
भुलाना हैं वो है तेरा शहर याद करेगी दुनिया मेरे
शब्द को ऐसा कुछ बतायेगें की क्या है तेरे शहर में

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5 JAN 2022 AT 14:39

अक्सर ऐसा होता है
मेरा मन सोच पुराना ख़्वाब रोता है

क्या मैं चलु या ठहरूं इन अँधेरी रातो मे
ये दिल हर पल ऐसे अनबन में रहता है

मैंने पढ़लिया जीवन को फिर भी वो ख़्वाब
हर एक हक़ीक़त पढ़ने को अड़े रहता है

मेरा दिल हर दम मुझसे यह कहता है
क्यों तेरा मन हर घड़ी उदास सा रहता है

लेकिन मन ये मेरा हो कर दुःखी भी
हर पल सबमे समझदार बन रहता है

पर अक्सर ऐसा होता है ये दिल
बैठ तन्हाई में रोता है!!

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4 JAN 2022 AT 12:37

सब को मनाने में अपना फ़र्ज़ निभाने में
मैंने खुद का ही ये चंचल मन खो दिया
एक मिट्टी(तन) को बचाने के पीछे मैंने
ये मेरा अमूल्य रत्न ही कहीं खो दिया

दिया सबको मान सम्मान पर प्यार सबने
ही अपना ना जाने कहाँ कहीं और खो दि
क्यों मैंने सब को पाने में लगी खुद को भूल
खुद से मिलने का हर वो वचन ही खो दिया

किसी के इस कदर रूठने के हर सवालों का
कहाँ फिर सबने अपना हर जवाब ही खो दिया
रूठ बैठे सब दोस्त जब साथ हो कर उनके मेरे
कहीं और खोने पर मैंने अब वो साथ खो दिया

खुद की ही मस्तियों में भिगो कर सबको मैंने
मानो उन्हें इस मोह के संसार से कहीं खो दिया
पर किया नजरअंदाज इस कदर किसी ने अब
उनसे अपनी आख़िरी मुलाक़ात को खो दिया

मतलबी से शहर में रमता नहीं अब ये सुना मन
मैंने तो उनके पीछे अपनी हर मस्ती को खो दिया
अब भी सब जेहन में रखते है और याद करते करते
उन्हें मैंने खुद से अपनी हर मुलाक़ात को खो दिया

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