Nikki Mahar   (Writeside.in (Nikki Mahar))
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Joined 5 April 2017


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Joined 5 April 2017
9 JUN 2021 AT 22:43

IG: Writesidein

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26 MAY 2021 AT 21:09

अंतिम मुलाकात की अन्तिमता को नकारना
प्रेम की जिजीविषा है।

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22 MAR 2020 AT 18:43


जिस परिंदे ने किया तय, क्षितिज छू कर लौट आना,
कितनी उसमें कैफ़ियत थी, क़फ़स में किसने ये जाना?

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3 MAR 2020 AT 0:35

होना तय है किसी अक्स में इश्क़ का वजूद तभी,
उदास आँखे लिए चेहरे पे मुस्कानें बिखेरे जो कभी

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10 NOV 2019 AT 0:37

बख्शे हैं  जो वक़्त ने  चंद लम्हें नायाब से,
बिखर न जाएं कहीं, फुर्सत की किताब से,

ए वक़्त! मेरे हिसाब से तू भी तो चल दो घड़ी
चलना है फिर हमको ताउम्र तेरे हिसाब से,

अक़्स की तहों तक मुझको सुकूं दे मौला,
इस शख्स को मतलब नहीं बाहरी खिताब से,

मन भरकर रो न सके, मन भरना तो लाज़िम है
आँखों में यूँ ही नहीं अश्क भरे हैं बेहिसाब से,

खुद सवालों की गिरफ़्त में बंदी है क़िरदार मेरा,
इसलिए न टूटे जकड़न, तेरे किसी जवाब से।
© NikkiMahar (Writeside)


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17 AUG 2019 AT 1:08

मोहब्बत के सलीकों में,
दायरे ला नहीं सकती,
समझना है जो समझो तुम,
मैं समझा नहीं सकती।।
चुभन लेकर इक खालीपन,
मेरे अंदर भी बजता है,
समेटे हूँ मैं भीतर ही,
जुबां पर ला नहीं सकती।।
उमीदें साथ होने की,
कहीं कम तो नहीं लेकिन,
दूर हूँ भी नहीं लेकिन
पास बुला भी नहीं सकती।।
कितने तुम ज़रुरी हो,
बता ये भी नहीं सकती,
और उल्फत कितनी है तुमसे,
जता वो भी नहीं सकती।।
तुझको मायूस जब देखूँ,
आँख मेरी भी भरती है,
तेरे ज़ख्मों को सहलाऊँ;
दवा पर कर नहीं सकती।।
अजब ही दुनियादारी के
झमेले हैं मेरे हमदम,
अपनी मर्जी मैं तुझको
गले भी लग नहीं सकती।।

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3 JUL 2019 AT 0:46

सैलाब दर्द का आँसुओं संग बहना सिखाता है,
दायरा उम्र का सब कुछ सहना सिखाता है,
जब चीख़ें बाहर आने से परहेज़ करती हैं,
अंतस तब कलम कागज़ से सब कहना सिखाता है।

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20 JUN 2019 AT 23:36

मेरे मौन का मुझको मलाल नहीं कोई,
कि हक़ में मेरे अभी मेरी कविताएँ बोलती हैं।

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15 JUN 2019 AT 1:19

महज़ महसूस करने का सलीका जान जाओ ग़र,
मुझे नामौजूदगी में भी मौजूद पाओगे,

हाँ, लड़ते हैं, झगड़ते हैं, अक्सर बिगड़ते हैं,
पर रूठेंगे हरगिज़ नहीं, जितना भी सताओगे,

हम हाथों पे रखा हाथ और कंधे पे मिला साथ हैं,
बिन सवालों के सुनेंगे, जो भी सुनाओगे,

कोशिश रही हर आँसू को हँसना सिखाएँ हम,
उस ज़ख़्म का भी मरहम बनें, जो ना भी दिखाओगे,

ग़र कतरे नहीं पर ज़िंदगी ने इस परिंदे के,
वादा है साथ पाओगे, जब भी बुलाओगे।

© Nikki Mahar (Writeside)

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9 JUN 2019 AT 21:50

दीवारों के कान रहे हैं बरसों से,
काश कि होती बाहें भी,
फिर मुझको गले लगाता कमरा।

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