चलो हम कहना छोड देते है,कि तुम गलत हो।
शायद सही गलत से उस पार, बस
बङती उम्र की मटमैली चादर ओढकर,
तुम बस सयानी बन रही हो ।
है ना?
दिल एक जिद्दीं परिंदा है,
उतना ही जिद्दीं जितनी की तुम।।
वास्ता तो रूह से था तुम्हारी,पर
किसी जिद्द में हम भी कुरबान सहीं।
पता है,
नमक और चीनी दिखने में एक जैसे ,
शायद फर्क सालों पता ना चले।
वैसे शौक हो अगर चखने का ही,
तो चख कर ही सहीं।
वैसे चखना भी आसान नहीं होगा,
कुछ मेल खाती कमजोरियों के संग।
खैर,
चाँद के सीने को पूर्णिमा की रात,
दिल की आँख से जरूर देखना।
वैसे तो कहना छोड ही दिया है।
पर देख जरूर लेना।
-तपish
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