मुझसे मिलने आये,तो इतना श्रृंगार ना रख।इक बिंदी ,दो चूड़ी ,इक नथ बस पा के रख।आज मिली तो कल बिछड़ने का भी दस्तूर होगा, ये लाली,काजल,पायल,सनम के लिए संभाल के रख। -
मुझसे मिलने आये,तो इतना श्रृंगार ना रख।इक बिंदी ,दो चूड़ी ,इक नथ बस पा के रख।आज मिली तो कल बिछड़ने का भी दस्तूर होगा, ये लाली,काजल,पायल,सनम के लिए संभाल के रख।
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लबों से लबों की छुअन को क्या नाम दे,इश्क़, वासना, ज़रुरत, खवाइश इसे क्या अंजाम दे। -
लबों से लबों की छुअन को क्या नाम दे,इश्क़, वासना, ज़रुरत, खवाइश इसे क्या अंजाम दे।
हवस के दरिंदो से बचती, होंठ पर ज़हर लगा कर घूमती रही,एक शख्स बड़ा पाकीज़ा , माथा चुम साथ ले चला। -
हवस के दरिंदो से बचती, होंठ पर ज़हर लगा कर घूमती रही,एक शख्स बड़ा पाकीज़ा , माथा चुम साथ ले चला।
तेरा ,मेरा न हो पाना , ख़ुदा का इस जहाँन में होने का प्रतीक है । -
तेरा ,मेरा न हो पाना , ख़ुदा का इस जहाँन में होने का प्रतीक है ।
सर्दी में धूप, गर्मी में छाँव, बारिश में छाता बन जाना,खूबसूरत लगता यार का मौसम की तरह बदल जाना। -
सर्दी में धूप, गर्मी में छाँव, बारिश में छाता बन जाना,खूबसूरत लगता यार का मौसम की तरह बदल जाना।
दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।बस जो गुज़रे मुझपे कभी, वहीं बीतें तभी तुझपे जान।मैं क्यूँ कहूँ की रहूँगा,फिरूँगा उदास बेबस ही सदा।गर मैं ज़रा हँसलूं कहीँ, तुझे भी गोदभराई मुबारक जान।बात गर एक तरफ़ा हो, तो तेरा रुकना नाजायज़ जान।जब ये उन्स बराबरी की , तो तेरा जाना क्या है जान।ना ओढ़हु चोला दिखावे का, की खुश रखे रब तुझे।गर मै रोऊं सिसकूँ कभी, हो घर तेरे भी मातम जान।दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।बस जो गुज़रे मुझपे कभी ,वही बीते तभी तुझपे जान। -
दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।बस जो गुज़रे मुझपे कभी, वहीं बीतें तभी तुझपे जान।मैं क्यूँ कहूँ की रहूँगा,फिरूँगा उदास बेबस ही सदा।गर मैं ज़रा हँसलूं कहीँ, तुझे भी गोदभराई मुबारक जान।बात गर एक तरफ़ा हो, तो तेरा रुकना नाजायज़ जान।जब ये उन्स बराबरी की , तो तेरा जाना क्या है जान।ना ओढ़हु चोला दिखावे का, की खुश रखे रब तुझे।गर मै रोऊं सिसकूँ कभी, हो घर तेरे भी मातम जान।दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।बस जो गुज़रे मुझपे कभी ,वही बीते तभी तुझपे जान।
हां सच ही तो है कि खाना माँ जैसा कहाँ बना पाते है हम , झाड़ू लगाते है तो आधा कचरा कमरे में ही पड़ा रह जाता है,औरपोछा भी बिल्कुल गीला ही लगा देते है।पर कभी कभी कुछ अधपका खाना या गीला पोछा भी उसके एक आध काम कर देता हैं।तो इस दीपावली थोड़ा हाथ बटा दीजिये।।।घर के बेटों से गुज़ारिश। -
हां सच ही तो है कि खाना माँ जैसा कहाँ बना पाते है हम , झाड़ू लगाते है तो आधा कचरा कमरे में ही पड़ा रह जाता है,औरपोछा भी बिल्कुल गीला ही लगा देते है।पर कभी कभी कुछ अधपका खाना या गीला पोछा भी उसके एक आध काम कर देता हैं।तो इस दीपावली थोड़ा हाथ बटा दीजिये।।।घर के बेटों से गुज़ारिश।
वक़्त के इस पहर बस यही उड़ेधबुन हैकीइक ज़िन्दगी बर्बाद कर गयी मुझेया इक ज़िन्दगी बर्बाद कर दी मैंने।। -
वक़्त के इस पहर बस यही उड़ेधबुन हैकीइक ज़िन्दगी बर्बाद कर गयी मुझेया इक ज़िन्दगी बर्बाद कर दी मैंने।।
तुम क्या याद रखोगे ,एक उम्र के बाद,तुम क्या याद भी रखोगे , एक उम्र के बाद,रहेगा जाने क्या भुला, जाने क्या बिसरोगे यौवन के जाने के बाद, यादाश्त के धुंधलाने के बाद। -
तुम क्या याद रखोगे ,एक उम्र के बाद,तुम क्या याद भी रखोगे , एक उम्र के बाद,रहेगा जाने क्या भुला, जाने क्या बिसरोगे यौवन के जाने के बाद, यादाश्त के धुंधलाने के बाद।
Turn on airplane mode and start enjoying the flight... -
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