निःशब्द  
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Joined 28 April 2018


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14 SEP 2020 AT 20:40

तुम हर रोज आती हो,
उसी झील के किनारे पे,
बहुत देर कर तक देखता हूं मैं,
बैठे हुए चांद को उस चांद की रोशनी मेें।

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10 SEP 2020 AT 22:25

ढल गईं ये शाम भी,
आज रात में अंधेरा बहुत हैं,
मैं अब भी क्यों दे रहा हूँ आवाज उन्हें,
जब अब वहाँ मुझे सुनने वाला नहीं है।
आसमान में कुछ तारे चमकते है,
चांद दिखता नहीं आज भी बादल बहुत है,
चिराग़ बूझ रहे है तेल की उम्मीद में,
मौसम में नमी के साथ हवा तेज है।

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30 AUG 2020 AT 18:38

एक अरसे बाद तेरे इश्क़ के बोझ से फ़ारिग हुए हम,
बड़े तन्हा थे जब तेरे साथ थे हम,
कल की सुबह कुछ तो नयी होगी,
कुछ हो या ना सही तुझसे उम्मीद नहीं होगी |

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14 JUL 2020 AT 10:00

मेरी व्यक्तिगत जीवन की अन्तिम शाम थी,
तुम,
और वो गुज़र गयीं.
अब नहीं कोई चाह रोशनी की,
अंधेरे की आहटों में अगर कुछ है,
वो तुम.

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11 JUL 2020 AT 1:32

हाँ मैं अपराधी हु,
कब से?
आज से तो नहीं!
जाने दें कब से,
पर हाँ मैं अपराधी हूँ।
क्यों हूँ मैं अपराधी?
ये तो बताते,
आप नहीं तो मैं बतलाता,
न्यायालय में कहानी सुनता।
पूछते मुझे सवाल, मैं जवाब सुनता।
चलिये कोई नहीं...
कोई और बताएगा,
राज गुनाहों के अपने सुनाएगा।
कभी भूख, कभी ज़रूरत, कभी कमज़ोरी,
ने कराए होंगे,
अपराधी तो किसी का सपना नहीं था,
अनजान था तो,
किसी ने रास्ता दिखाया होगा।
हाँ मैं अपराधी हूँ,
मेरी तो यहीं मंज़िल थीं।
पर आप तब कहा थे?
जब ये अपराधों की नीव पड़ी,


To be continue..

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17 JUN 2020 AT 7:42

तेरे शहर से में आज निकला हु यू रुशवा होके,
जैसे सितारों की महफ़िल से चाँद चला हो

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1 MAY 2020 AT 23:30

यू ना होते अधूरे जो,
ख़्वाबों कीं रातों की सुबह होतीं

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9 APR 2020 AT 23:47

आज यें पलकें भी खफा है एक दूसरे से,
कितनी ही कोशिश कर ली कुछ देर मिलती ही नहीं है।

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23 MAR 2020 AT 9:08

वक़्त लगेगा अभी जानने में मुझे,
मैं दरिया नहीं जो वरसात में उबल जाऊँ।

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7 MAR 2020 AT 22:37

अगर सफ़र लंबा हो तो
सवारी मज़बूत लेनी चाहिए ।
यहाँ तो सफ़र ज़िन्दगी का था,
सफलता आगे निकल गयीं एक उम्मीद से ।

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