एक चिरकालीन
चुप्पी के बाद
निकली चीख में
चट्टान तक चीर देने की
अा जाती है शक्ति
शिकारी के पिंजरे से छूटे
परेवा के परों में अा जाती है,
आसमां तक उड़ने की प्रेरक स्फूर्ति
प्रेमी के मोह में बैठी
तितिक्षु प्रेयसी का प्रेम
प्रतीक्षा के पावक से पवित्र हो,
अपनी पराकाष्ठा प्राप्त कर लेता है
और इस तरह पुलक उठता है,
प्रेमी के अभाव में भी।
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